गीता श्लोक - 18.63
श्री कृष्ण इस श्लोक के माध्यम से अर्जुन को कहते हैं --- मुझे जो बताना था वह बता दिया है अब तूं
जैसा उचित समझे वैसा कर ।
श्री कृष्ण इस श्लोक से पहले कहते हैं -- जा तूं उस परमेश्वर की शरण में , वहीं तेरे को शांति मिलेगी और यहाँ
कह रहे हैं - मुझे जो बताना था वह बता दिया अब तूं जो चाहे वैसा कर - यहाँ संदेह हो रहा है की शायद
अर्जुन प्रभु की बातों की अनसुनी तो नहीं कर रहे ?
अर्जुन को मोह मुक्त करानें के समंध में श्री कृष्ण के 556 श्लोक हैं और अब इन श्लोकों में मात्र नौ और श्लोक
शेष हैं और प्रभु ऐसी बात कह रहे हैं , आखिर बात क्या है ?
अर्जुन को मोह से मुक्ति दिलानें के सम्बन्ध में श्री कृष्ण क्या - क्या नहीं किये : कर्म - ज्ञान , कर्म - योग ,
ज्ञान - योग , संन्यास , त्याग , प्रकृति - पुरुष सम्बन्ध , गुण विभाग एवं कर्म विभाग , आत्मा और
परमात्मा से सम्बंधित सभी बातों को तो बता दिया है लेकीन संभवतः गीता का अर्जुन अभी भी मोह में ही है ।
अर्जुन को [गीता - 11.8 ] दिब्य नेत्र दे कर अपनें ऐश्वर्य रूप को भी दिखा दिया है लेकीन अर्जुन पत्थर की
तरह मोह में स्थिर से दीखते हैं ।
गीता सूत्र - 18.62 से गीता सूत्र - 18.73 तक को जब आप गंभीरता से देखेंगे तो आप को जो मिलेगा वह
इस प्रकार से होगा -----
जब श्री कृष्ण को यह लगनें लगता है की मेरे ज्ञान का असर अर्जुन के मोह को समाप्त करनें में सफल नहीं हो रहा तब श्री कृष्ण अर्जुन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहे हैं - कभी कहते हैं - मैं ब्रह्म हूँ , तूं मुझे समर्पित कर दे , कभी कहते हैं - जा तूं उस परमेश्वर की शरण में , वहीं तेरे को शान्ति मिलेगी , कभी अपनी ओर खीचते हैं तो कभी
टूर फेकते हैं , अबहीं कहते हैं - बेकार है ऐसे ब्यक्ति को गीता ज्ञान देना जो नास्तिक हो आदि - आदि ।
मोह में फसा ब्यक्ति सहारा खोजता है और जब मिला हुआ सहारा टूटता दीखता है तो वह हिल जाता है और
अपनी सोच में बदलाव ले आना चाहता है । श्री कृष्ण जब यह देखते हैं की अब अर्जुन कुछ बदला है तब
पूछते हैं - क्या तूने [ गीता - 18.72 ] स्थीर मन से गीता ज्ञान सूना , क्या तेरा मोह जनित अज्ञान समाप्त हुआ ?
और अर्जुन कहते हैं [ गीता - 8.73 ] - जी हाँ , मेरा अज्ञान समाप्त हो गया है , मीन अपनी स्मृति पा ली है और अब मैं आप की शरण में हूँ , आप जैसा कहेगे मैं वैसा ही करूंगा ।
=====ॐ======
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