Friday, March 5, 2010

गीता ज्ञान - 96

गीता सूत्र - 18.78

यह श्लोक संजय का है और गीता का आखिरी श्लोक भी है । संजय ध्रितराष्ट्र के सहयोगी हैं और गीता के अंत में कह रहे हैं ------
विजय वहा है जहां श्री कृष्ण एवं अर्जुन हैं - अब आप सोचिये , अभी युद्ध प्रारम्भ भी नहीं हुआ है और परिणाम संजय पहले दे रहे हैं , इस स्थिति में अपने सहयोगी की बात सुन कर ध्रितराष्ट्र किस भाव में होंगे ?
अब कुछ और बातों को देखते है ------
[क] सत्य ब्यक्त करनें पर असत्य हो जाता है ....... लाउत्सू कहते हैं ।
[ख] गुणों की होश ही सत्य है ..... गीता - 18.40
[ग] भावों से भाषा है और सत्य भावातीत है .... गीता - 2.16
[घ] जो भी ब्यक्त हैं वह सब उसकी ओर इशारा मात्र हैं , लेकीन सत्य नहीं हैं .... लाउत्सू कहते हैं ।
[च] आज जो गीता उपलब्ध है वह संजय की देंन है जो उस गीता में पहुंचा सकता है जो प्रभु के मुख से बोला गया था ।
[छ] गीता को बुद्धि से नहीं ह्रदय से पकड़ना चाहिए ।
[ज] संजय का गीता संजय तक पहुंचाता है और जो संजय बना , वह परम गीता में हो सकता है ।

आज विज्ञान , आयुर्वेद एवं अन्य इस बात पर काम कर रहे हैं की तन - मन की बीमारियों पर विजय कैसे प्राप्त हो , एक मर्ज की दवा बनती है , दूसरा मर्ज आ पहुंचता है , विज्ञान वह अमरत्व की दवा क्या बना भी पायेगा ? यह प्रश्न सनातन प्रश्न है ।
गीता कहता है ----- काम , क्रोध , लोभ , मोह , भय एवं अहंकार रहित अमरत्व की दवा नहीं खोजता , वह अमरत्व में रहता है और परम आनंदित होता है ।
गीता सभी मर्जों की दवा देता है और बाजार में मात्र कुछ पैसों में उपलब्ध भी है , लोग अपने - अपनें घरों में रखे भी हैं लेकीन उसे खोल कर कोई अपनें मर्ज की दवा नहीं निकालता ।
गीता पिछले पांच हजार साल से लोगों के मध्य है लेकीन कितनें लोग इस को अभी तक अपनाया होगा ?
आप इस प्रश्न पर सोचना । राजस एवं तामस गुणों की पकड़ ही वह बैक्टेरिया पैदा करते हैं जीनसे तरह - तरह के मर्ज आते हैं ।
## कृष्ण को प्रभु का दर्जा देना आसान है लेकीन उनकी बातों पर यकींन करना....... ?
## कृष्ण को पूजना अति आसान है लेकीन कृष्ण मय होना ...... ?
## रास लीला करना अति आसान है लेकीन मन से राधा बनना ..... ?

=======ॐ=======

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