Saturday, March 20, 2010

श्री गुरु ग्रन्थ साहिब एवं गीता - 4

परम धाम का मार्ग - श्री जपजी साहिब



[क] जपजी साहिब आदि गुरु श्री नानक जी द्वारा तैयार किया गया एवं गुरु श्री अंगद जी साहिब द्वारा सवारा गया अमृत कलश है ।

[ख] जपजी साहिब का आदि ही अनंत से होता है फिर आप सोचिये इसका अंत कैसा होगा ?

[ग] गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं ...... जप यज्ञ , मैं हूँ [ गीता - 10.25 ] और यह भी कहते हैं .....

सृष्टि के प्रारभ में वेदों , यज्ञों एवं ब्राह्मण को ,मैनें बनाया [ - 17.23 ] , ब्राह्मण वह है ...........[ गीता - 2.46 ] जो ब्रह्म से परिपूर्ण हो ।

जप जी के पाठ करनें से क्या मिलेगा , यह तो बताया नहीं जा सकता लेकीन हमारे पास खोनें ले किये है भी क्या ? हम जीवन भर जो कूड़ा - करकट इकट्ठा करते हैं वह हमें तनहाई के अलावा और क्या देता है ? क्या पल भर का सुख जिसमें दुःख का बीज पल रहा हो , वह सुख है ? सुखी कौन होता है ?

सुखी थे ------

आदि गुरु श्री नानकजी .....
राम कृष्ण परमं हंस .........
चैतन्य ......
कबीर जी साहिब .....
और मीरा जैसे भक्त , हम तो भोग के सुख में परम सुख की एक हलकी सी छाया देख कर अहंकार से भर उठते हैं ।

भक्त के पास भाषा का अभाव होता है लेकीन परा भक्ति में पहुंचा भक्त जब भी बोलता है तब उसकी

वाणी सुननें वाले के ह्रदय में सीधे पहुंचती है और सारे तन - मन में प्रभु की तरंगों से भर देती है ।

टीवी चैनलों पर आप गुरु वाणी को सुनें , आँखें बंद हों और गुरु वाणी के साथ आप बहते रहें। श्री गुरु अंगद जी साहिब , आदि गुरु श्री नानक जी के साथ रहे , उनको आदि गुरु खूब अमृत चखाया और देह छोड़ते समय अपने आत्मा को उनके अन्दर स्थापित कर के अपनी परम रोशनी से उनको भर कर बोला -
जा अब तूं जा और औरों को प्रकाशित कर ।

अंगद जी साहिब जप जी के माध्यम से श्री ग्रन्थ साहिब के प्रथम पृष्ठ से आठवें पृष्ठ तक जो परम ज्योतिओं की ज्योति , स्वप्रकाषित ज्योति डाली है उसके परे और कुछ भी नहीं है ।

आगे हम मूल मंत्र पर ध्यान करनें वाले हैं और आप सादर आमंत्रित हैं ।



======ॐ======

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