Tuesday, March 30, 2010

श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी एवं गीता - 15

जपजी मूल मंत्र - 7 ...... अजुनी

आदि गुरु श्री नानकजी साहिब द्वारा अलमस्ती में गाया गया जपजी का मूल मंत्र छोटे - छोटे चौदह
सूत्रों की जप माला है और जिसकी सातवीं मणि है - अजुनी ।
आदि गुरु परम के दीवानें थे , आदि गुरु परम फकीर थे , आदि गुरु परा भक्त थे और ऐसे फकीरों के गीतों का
कोई अर्थ नहीं होता , इनके गीत में वह परम ऊर्जा होती है जो तन , मन एवं बुद्धि से अप्रभावित होती है ।
बुद्धि स्तर पर अजुनी का अर्थ है वह जिसके होने का सम्बन्ध योनी से न हो अर्थात जो स्वतः है जिसके होनें के लिए स्त्री - पुरुष के योग की जरुरत नहीं , वह तो तब था जब कुछ न था , वह अब है जब संसार है और तब भी
रहेगा जब पुनः कुछ न होगा । वह अजुनी हर काल में , हर युग में ठीक वैसा होता है जैसा परा भक्त
अपने ह्रदय में देखता है ।

अजुनी को बुद्धि स्तर पर समझनें केलिए आप को गीता के निम्न श्लोक आप की मदद कर सकते हैं ----
4.6, 7.25, 9.18, 10.3, 10.32, 10.33, 10.40, 13.17, 13.31
आदि गुरु श्री नानक जी साहिब का मूल मंत्र एक माध्यम है जो अपरा भक्ति से परा भक्ति में धीरे - धीरे पहुंचाता है जहां भक्त के पास ------
** न तन होता है .....
** न मन होता है ....
** बुद्धि परम में डूबी होती है , और वह योगी ......
** पुरे ब्रह्माण्ड में ब्रह्म को ही देखता हुआ ......
** अपनें को धन्य समझता है ।
वह जो पुरे ब्रह्माण्ड के कण - कण में प्रभु को देखता है ----
वह जो परा भक्त है -----
वह जो परम श्रद्धा से परिपूर्ण है , वह ----
अजुनी का अर्थ नहीं लगाता , वह ----
अजुनी में निवास करता है ।

==== एक ओंकार सत नाम =====

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