Sunday, March 21, 2010

श्री गुरु ग्रन्थ साहिब एवं गीता - 5

जपजी साहिब एवं गायत्री

[क] मूल मंत्र का प्रारम्भ एक ओंकार से है और ....
[ख] गायत्री का प्रारम्भ ॐ है .....
[ग] एक ओंकार [ॐ] वेदों का आत्मा है ......
[घ] मूल मंत्र आदि गुरु नानकजी साहिब के ह्रदय में भरे अब्यक्त भाव का वह अंश हैं .....
जो ब्यक्त हो पाया है
[च] मूल मंत्र को समझनें के लिए आदि गुरु जैसा ह्रदय चाहिये न की .......
संदेह से भरी बुद्धि
[छ] मूल मंत्र गीता में परम श्री कृष्ण के उन 200 श्लोकों का सारांश है .....
जिनको परम प्रभु अर्जुन को मोह मुक्त करानें के लिए बोले हैं
आइये अब कुछ सूत्रों को देखते हैं - गीता में .......
[क] सूत्र - 10.35 ....प्रभु कहते हैं -- गायत्री , मैं हूँ ।
[ख] सूत्र - 7.8, 9.17, 10.25, 17.23 -- प्रभु कहते हैं ॥ एक ओंकार और ॐ , मैं हूँ ॥
[ग] सूत्र - 10.22 .... प्रभु कहते हैं ॥ सामवेद , मैं हूँ ॥
[घ] सूत्र - 9.17 ...... प्रभु कहते हैं ... ऋग्वेद , सामवेद एवं यजुर्वेद , मैं हूँ ॥
जपजी साहिब का मूल मंत्र , जप यज्ञ है जहां जप करता की यह स्थिति होती है .....
## न तन होता है ....
## न मन होता है ....
## ह्रदय भावातीत में होता है .....
## जहां वह स्वयं को संसार का द्रष्टा देखता है और .....
## जहां वह स्वयं को शरीर से बाहर देखता है और .....
ऐसे भक्त आदि गुरु नानक जी साहिब जैसे होते हैं , लेकीन .....
ऐसे भक्त सदियों बाद अवतरीत होते हैं ॥

====एक ओंकार सत नाम ======

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