गीता के पांच श्लोक
[क] गीता श्लोक - 2.62 - 2.63
चिंतन से आसक्ति , आसक्ति से कामना , कामना खंडित होनें का भय क्रोध उत्पन्न करता है ।
[ख] गीता श्लोक - 3.37
क्रोध काम का रूपांतरण है और काम राजस गुण का मुख्य तत्त्व है ।
[ग] गीता श्लोक - 4.10
राग , क्रोध एवं भय रहित ब्यक्ति प्रभु में निवास करता है ।
[घ] गीता श्लोक - 2.55
कामना रहित स्थिर बुद्धि वाला होता है ।
गीता के ऊपर दिए गए पांच श्लोक गीता के उन 200 श्लोकों में से हैं जिनमें भोग तत्वों को ब्यक्त किया गया है एवं कर्म - योग , ज्ञान - योग , क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ के सम्बन्ध को और गुणों के माध्यम से गुनातीत तक पहुंचनें का मार्ग दिखाया गया है ।
गीता जब हाँथ में हो तो पांच मिनट अपनीं आँखे बंद करें , एकांत में बैठ कर जैसे ऊपर पांच सूत्रों की एक माला बनाई गई है वैसे आप अपनी आवश्यकता के अनुकूल कुछ श्लोकों का चयन करें , उन्हें एक जगह बैठाएं और फिर उन पर गहन मनन करें , ऐसा करनें से आप के ---------
[क] तन - मन में निर्विकार ऊर्जा का संचार होगा ......
[ख] तन - मन से जब विकार निकलते हैं तब दुःख तो होता है लेकीन वह दुःख नरक छोडनें का दुःख है ।
[ग] धीरे - धीरे ......
न मन होगा
न बुद्धि में संकल्प - बिकल्प होंगे और आप जहां होंगे वह होगा .....
परम श्री कृष्ण का आयाम ।
====ॐ======
Monday, March 8, 2010
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