Monday, March 1, 2010

गीता ज्ञान - 91

चढे न दूजो रंग

गीता श्लोक - 18.51 - 18.53 कहते हैं ------
* नियमित हल्का सात्विक भोजन करनें वाला ......
* तर्क - वितर्क से परे रहनें वाला ......
* विशुद्ध बुद्धि वाला .....
* सात्विक ध्रितिका वाला ....
* वह जिसकी इन्द्रियाँ नियंत्रित हो .....
* शरीर , मन एवं वाणी जिसकी नियोजित हों ....
* राग - द्वेष रहित , जो हो .....
* काम , क्रोध , ममता , अहंकार से अप्रभावित .....
* सम भाव एवं ध्यान में मग्न रहनें वाला ......
ब्रह्म से परिपूर्ण होता है ।
ऊपर जो बातें बताई गई हैं वही बातें यहाँ भी कही गई हैं -----
मनुश्मृति - 6.92 धर्म के दस लक्षण के रूप में ......
गीता - सूत्र 2.46 में ब्राह्मण की परिभाषा के रूप में .....
गीता सूत्र - 18.42 में ब्राहमण के स्वभाव के रूप में ....
गीता सूत्र - 13.7 - 13.11 में ग्यानी के लक्षण के रूप में ....

अब हम गीता श्लोक - 3.34, 16,21, 6.27, 2.52, 13.24, 14.21 - 14.27, 2.55 - 2.71, 3.37 - 3.43 को देखते हैं -------
गीता कहता है तीन गुण एवं इनके भाव मनुष्य को गुलाम बना कर कर्म करवाते हैं और मनुष्य कर्मों के फल के रूप में कभीं क्षणिक सुख तो कभी क्षणिक दुःख का अनुभव प्राप्त करता है ।
गुण तत्त्व हैं - काम क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य , अहंकार जो मनुष्य को प्रभु से दूर रखते हैं ।
वह जो -----
तन , मन , बुद्धि से स्थिर है
जो गुणों का गुलाम नहीं है
वह भोग संसार में कमलवत रहता हुआ .......
प्रभु से परिपूर्ण होता है ।
रंगों का रंग - परम रंग में रंगे ब्यक्ति के ऊपर कोई अन्य रंग नहीं चढ़ता ।
गीता बताता है की .....
प्रकृति में जो रंग हैं उनका होश ही परम रंग को दिखाता है , तो देर किस बात की ? गीता प्रेस , गोरखपुर से प्रकाशित गीता मात्र पच्चीस रुपये में मिलती है जो आप को परम रंग में रंग सकती है ।

=====ॐ========

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