हिंदू परिवार में गीता को खोजना नहीं पड़ता यह होता है , पूजा जाता है लेकिन इसकी स्तिथि एक अनाथ जैसी होती है , यह बात तो काफी कड़वी है लेकिन है सत्य जब परिवार में कोई आखिरी श्वास भर रहा होता है तब लोग गीता को खोजते हैं --उस अचेतन स्थिति में बेहोश पड़े ब्यक्ति को सुनानें के लिए जिससे उसे मुक्ति मिल सके
ऐसा ब्यक्ति जो अपनें जीवन में जहाँ भी रहा नरक बनाता रहा , जिसका जीवन काम,कामना , क्रोध , लोभ , मोह तथा बिकारों से परिपूर्ण था , जिसनें जीवन में कभीं भी परम श्री कृष्ण से नाता नहीं बनाया क्या ऐसा ब्यक्ति आखिरी समय में उनसे जुड़ सकता है? अब आप कुछ सोचें--यदि गीता में ऐसी उर्जा है जो भोग में पुरी तरह से डूबे भोग से भोग में आखिरी स्वाशभरते ब्यक्ति को परम गति दे सकता है तो फ़िर इसको लोग अपनें घर में एक अनाथ की तरह क्यों रखते हैं?
एक बात आप अपनें अंदर बैठा लें -- गीता नतोस्वर्ग का नक्शा बनाता है न ही स्वर्ग प्राप्ति को परम मानता है ---हाँ इतनी बात सत्य जरुर है--गीता में डूबा ब्यक्ति यदि गलती से नरक में भी पहुच जाता है तो उसके चरों तरफ़ स्वर्ग स्वतः निर्मित हो जाता है
वेदों में स्वर्ग-प्राप्ति को परम माना गया है पर गीता स्वर्ग को भी भोग की जगह मानता है---
यहाँ इस सन्दर्भ में आप गीता के इन श्लोकों को देखें------2.42,2.43,2.44,2.45, 2.46,6.40,6.41,6.42,6.43,6.44,6.45,6.46,6.47
गीता स्पष्ट रूप से कहता है-- गीता में डूबे योगी का सम्बन्ध वेदों से उतना रह जाता है जितना सम्बन्ध एक ब्यक्ति का छोटे तालाब से रह जाता है जब उसे बड़ा तालाब मिल जाता है
गीता में अर्जुन का सातवाँ प्रश्न गीता श्लोक 6.37---6.39 से इस प्रकार है----
श्रद्धावान असंयमी योगी का योग जब खंडित हो जाता है और उसकी मृत्यु हो जाती है तब उसकी क्या गति होती है? इस प्रश्न के उत्तर में परम कहते हैं----यहाँ दो परिस्थितियां आती हैं ---पहली परिस्थिति में ऐसे योगी आते हैं जो बैराग्य - अवस्था प्राप्ति से पहले शरीर छोड़ जाते हैं , ऐसे योगी कुछ समय स्वर्ग में रह कर पुनः किसी अच्छे कुल में जन्म लेकर अपनीं साधना पुनः प्रारम्भ करते हैं और दूसरी परिस्थिति में ऐसे योगी आते हैं जिनकी साधना वैराग्यावस्था में होती है लेकिन किसी कारण वश उनका शरीर जबाब दे जाता है,ऐसे योगी किसी वैरागी कुल में जन्म लेकर अपनीं आगे की साधना पूरी करते हैं आप नें गीता में स्वर्ग से सम्बंधित परम की बातों को देखा अब इन पर आप गहराई से सोंचें जब गीता की रचना हुई थी उस समय तीन ही वेड थे......यहाँ आप देखिये गीता श्लोक 9।20
योगी और भोगी दोनों परमात्मा से जुड़ते हैं, जोगी परमात्मा से परम को तत्त्व से समझनें के लिए जुड़ता है और भोगी परमात्मा को भोग साधनों की प्राप्ति के लिए प्रयोग करता है
Wednesday, March 4, 2009
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