Wednesday, March 25, 2009

गीता-सूत्र १८.६२

गीता-सूत्र 18.62
परम श्री कृष्ण कह रहे हैं...........
तू सब प्रकार से उस परमात्मा की शरण में जा,उस की कृपा से तुम्हें परम शान्ति मिलेगी और तू परम धाम को प्राप्त होगा।
गीता का अंत होरहा है, अभी तक परम स्वयं को परमात्मा बता रहे थे, कोई कसार नही छोड़े यह समुझानें में की तू
मेरी शरण में आजा, मै तुझे उचित मार्ग दिखाउंगा पर अर्जुन के उपर इस बात का कोई ख़ास असर नही दीखता।
परम श्री कृष्ण अंत में आकर क्यों कह रहे हैं की तू उस परमात्मा की शरण में जा? क्या उनका भी कोई परमात्मा है? आप परमात्मा के सम्बन्ध में जितना भ्रम अपनें बुद्धि में पैदा कर सकते हैं,करें क्योंकि आगे चल कर हम गीता के परमात्मा से मिलनें वाले हैं। गीता में एक सौ से बी अधिक श्लोक परमात्मा से सम्बंधित हैं जिनमें दो सौ से भी अधिक उदहारण दिए गए हैं जो परमात्मा के विभिन्न स्वरूपों की और
इशारा क्कारते हैं। आप कुछ दिन परमात्मा के सम्बन्ध में सोचें,अभी आप जित्नासोच लेगे अच्छा रहेगा क्योकि..........
गीता का परमात्मा मन-बुद्धि में नहीं समां सकता........है न मजे की बात।

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