गीता के निम्न श्लोकों को देखिये .........
श्लोक 1.22 1.40----1.44 तक 2.31---2.34 तक 3.35 18.47
महाभारत युद्ध को अर्जुन तो ब्यापार कहते हैं[1.22] और परम श्री कृष्ण धर्म-युद्ध कहते हैं[2.31] ---अब आप सोचिये कि यह क्या था
अर्जुन जातिधर्म और कुल धर्म की बात करते हैं [1.४० से १.४४ तक ] और परम स्व-धर्म तथा पर धर्म की बात करते हैं [३.३५ एवं १८.४७ ].....अब आप गीता में जाति-धर्म,कुल-धर्म , पर - धर्म एवं स्व-धर्म को समझें
कुल की परम्परा के अनुकूल चलना एवं कुल की अनुबांशिका को सुरक्षित रखना कुल- धर्म में आता है और जाति के कर्मों को करना तथा जाति आधारित रीति - रिवाजों पर चलना कुल- धर्म में आता है परम स्व-धर्म एवं पर धर्म के सम्बन्ध में कहते हैं -------
अपना धर्म दोष पूर्ण होनें पर भी पर - धर्म से अच्छा होता है [ ३.३५ ,१८.४७ ]
महाभारत युद्ध में सभी तो एक परिवार के हैं वहां पर कौन है ?
महाभारत-युद्ध से क्या मिला ?
देश के सभी वैज्ञानिक,चिकित्सक तथा अन्य महत्वपूर्ण लोग तो समाप्त होगये सभी बुद्धि-जीवी समाप्त होनें से इस देश में युग परिवर्तित हो गया परम श्री कृष्ण जब वापस गए तो उनके राज्य में कलि-युग झांक रहा था , द्वारिका समुद्र में समां गयी , परम भी शरीर त्यागा
और उनके परिवार को अर्जुन द्वारिका से हस्तिना पुर ले आए क्योंकि उनलोगों का वहा रहना भी मुश्किल हो गया था
महाभारत से पूर्व भारत एक वैज्ञानिक देश था जहाँ पृथ्वी के अन्य भाग से लोग विद्या-ग्रहण
करनें आते थे और आज कलि-युग में यहाँ के लोग बाहर जाते हैं
निराकार जब साकार रूप में अवतरित होता है तब वह धीरे-धीरे अनंत से सिमित होनें लगता है, वह भी धीरे- धीरे संसार में उलझनें लगता है यदि आप अनंत से जुड़ना चाहते हैं तो आप को भी साकार से निराकार की यात्रा करनी पड़ेगी , क्या आप तैयार हैं ?
********** ॐ **********
Thursday, March 12, 2009
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