- यहाँ स्वर्ग -प्राप्ति सब का उद्देश्य है,लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्वर्ग से परमात्मा का द्वार नहीं दिखता,मृत्यु-लोक में वैराग - माध्यमसे परमात्मा का द्वार दिखता है।
- गुणों से सम्मोहित मन नरक कीओर खीचता है, लेकिन रिक्त मन परमात्मा से जोड़ता है।
- शांत-मन दर्पण पर परमात्मा प्रतिबिंबित होता है।
- परमात्मा की राह पर भोग पीठ पीछे होता है और अंदर परम शुन्यता होती है।
- जब सभी द्वार बंद होजाते हैं, कुछ समय पूर्ण शुन्यता का आलम होता है, आखों से आशू रुकते ही नही तब एक खिड़की खुलती है, जिससे एक किरण आती दिखाती है , वह किरण अंदर ह्रदय में कम्पन पैदा करती है,जो स्वयं परमात्मा से होती है और शरीर के रग-रग में परम-ऊर्जा का संचार कर देती है।
- परमात्मा की खोज जब तक खोज है, परमात्मा दूर ही रहता है,लेकिन जब खोज में खोजी खो जाता है तब परमात्मा अवतरित होता है।
- द्वैत्य में अद्वैत्य का आभाष परमात्मा से जोड़ता है।
- साकार में निराकार की अनुभूति ही परमात्मा की अनभूति है।
- परा भक्त के लिए परमात्मा निराकार में नहीं रहता ।
- निराकार मायामुक्त जब साकार रूपमें माया से प्रकट होता है तब माया से वह धीरे-धीरे घिरनें लगता है, माया साकार परमात्मा को भी नहीं छोड़ती जो परमात्मा से ही है।
- मायामुक्त योगी परम - तुल्य होता है।
Thursday, March 26, 2009
ध्यान-सूत्र [१]
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