Sunday, March 29, 2009

गीता-बीज [ भाग-१ ]

क- मोह के साथ वैराग नहीं मिलता गीता- 2.52
ख- वैरागसे संसार को जाना जाता है गीता- 15.3
ग- संसार के दो तत्त्व हैं ...जीवात्मा- स्थूल शरीर गीता-15.16
घ- जीवात्मा, परमात्मा है गीता-10.20,13.17,13.22
15.7,15.15,18.61
च- स्थूल शरीर अपरा-पराप्रकृतियों तथा आत्मा से है गीता- 7.4,7.5,7.6,14.3,14.4,
13.5,13.6
छ- राजस-गुणके साथ परमात्मा मय होना असंभव है गीता- 6.27
ज- गुण कर्म-करता हैं, करता-भावअंहकार किछाया है गीता- 3.27,2.45,3.33
झ- मन, आसक्ति,कामना, क्रोध, लोभ का गहरा सम्बन्ध है गीता- 2.62, 2.63
त- संकल्प से कामना बनती है गीता- 6.24
थ- काम,क्रोध, लोभ नरक के द्वार हैं गीता- 16.21
गीता के इन मोतियों की माला आप को सेवार्पित है
===ॐ===

2 comments:

  1. बहुत अच्छी रचना और उस्स से भी अच्छी आप के विचार

    gargi
    abhivyakti.tk

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  2. beta gargi
    pyar
    giita param sri krisna ke vichar hai mere vichar unse achhe kaise ho sakate hain? giita vicharon se nirvichar men pahuchanen ka vigyan hai.parmatma aap ko sahi rah par rakhe.

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