पिछले अंक में गीता के 38 सूत्रों की एक सूचि दी गयी है जो गीता में गुणों को स्पष्टकरती है सात्विक-गुण से ज्ञान[ देखिये गीता सूत्र 13.2 ] की प्राप्ति होती है जिससे क्षेत्र- क्षेत्रज्ञ का बोध होता है , राजस- गुण से मनुष्य भोग से बधता है और तामस- गुण सात्विक एवं राजस दोनों के मध्य एक अवरोध है
अब हम गीता में कुछ और बातों को देखते हैं ...........
अर्जुन का पहला प्रश्न गीता-सूत्र 2.54 से इस प्रकार है-------- स्थिर - प्रज्ञयोगी की पहचान क्या है ? और गीता- सूत्र 14.21 से चौदहवां प्रश्न गुणातीतयोगी की पहचान से सम्बन्धित है इन दोनों प्रश्नों के मध्य गीता के 442 श्लोक हैं और अर्जुन के 11 प्रश्न भी हैं अर्जुन अपनें स्थिति के बारे में नहीं सोच रहे , वे तो परम की बातोंमें वह पाना चाहते हैं जिससे वे युध्य से बच सकें
गीता सुनानें वालों की कतारें लगी हैं लेकिन गीता - साधना करनें वाले कितनें हैं ? अर्जुन के ऊपर दिए गए प्रश्नों के लिए आप देख सकते हैं इन सूत्रों को........
2.11 2.15 2.52 2.55 2.56 2.57 2.58 2.64 2.68 2.69 2.70 2.71
3.34 4.10 4.22 5.3 5.6 5.7 5.10 5.18 6.2 6.20 6.24 629
6.30 14.14 14.22 14.23 14.24 14.25
इन सूत्रों से स्पष्ट होता है.........राजस- तामस गुणों के साथ कोई ब्यक्ति परमात्मा से नहीं जुड़ सकता और साधना में एक ऐसी भी स्थिति आती है जब सात्विक गुण को भी छोड़ना
पड़ता है गुण-साधना के सन्दर्भ में अब आप यहाँ गीता-सूत्र 14.14 , 14 . 23 , 14.5 ,
7.12 , 7.13 को एक साथ देखें----------गीता कहता है... गुणों के भावों की उत्पत्ति परमात्मा से होती है लेकिन परमात्मा गुणातीत है, आत्मा को तीन गुण स्थूल शरीर में रोक कर रखते हैं और गीता यह भी कहरहा है --बिना गुणातीत बनें परमात्मा को नहीं समझा जा सकता अर्थात गीता परमात्मातुल्य बनाना चाहता है गीता- साधना मृत्यु से मैत्री
बनानें की साधना है ------क्या आप तैयार हैं ?
आप एकांत में बैठ कर सोचना-----जब मनुष्य काम , कामना , क्रोध ,लोभ , मोह , भय तथा अंहकार रहित होगा तो वह समाज में कैसा दिखेगा ?
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