Friday, March 20, 2009

आसक्ति को जानों

आसक्ति कर्म-योग का पहला तत्व है --आसक्ति का अर्थ है ...पकड़ जो बिषय की ओर इन्द्रीओं एवं मन को खीचती है। ज्ञानेन्द्रियाँ जब बिषयों से मिलाती हैं तब मन उस बिषय पर मनन करनें लगता है,मनन से मन में आसक्ति उर्जा का संचार होनें लगता है जो उस बिषय के लिए कामना पैदा करता है। कामना से मन मोहित होकर उस बिषय को भोगनें के लिए कर्म-इन्द्रियों को आदेश देता है.....यह है --भोग का प्रारम्भ । कर्म-योग साधना में आसक्ति की साधना ही परम साधना है। आसक्ति रहित कर्म से नैष्कर्म की सिद्धि मिलाती है जो ज्ञान-योग की परा निष्ठा है जिसमें परमात्मा किआहत सुनाई पड़ती है। आसक्ति रहित कर्म-साधना से राजा जनक को सीडी मिली थी। गीता का मूल-मंत्र है----कर्म के माध्यम से उत्तम और कोई मध्यम नहीं जिससे परमात्मा तक पंहुचा जा सके। आसक्ति की साधना में बिषय,इन्द्रियां,मन तथा बुद्धि की साधना आती है। आप के साधना का चाहे कोई भी श्रोत क्यों न हो,सबमें आसक्ति की साधना से आगे की बात मिलनी इतनी आसन नहीं। इन्द्रियों का पीछा करो,मन का पीछा करो और जब इसका अभ्याश हो जायेगा तब कर्म स्वतः आसक्ति रहित होनें लगेगें।

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