माया ,गुण और परमात्मा
पहले गीता के छः श्लोकों को देखिये ---
श्लोक - 7.14 -7.15
तीन गुणों का एक माध्यम है जो सनातन है , सीमा रहित है जिसको माया कहते हैं । जो माया से प्रभावित है- वह भोगी है और माया से अप्रभावित ब्यक्ति- परमात्मा तुल्य होता है
श्लोक - 7.12 -7.13 , 10.4 -10.5
सात्विक, राजस और तामस - तीन गुण एवं इनके भाव परमात्मा से हैं लेकीन परमात्मा गुनातीत एवं भावातीत है ।
अब आप गीता के इन सुतों को भी देखें ------
16.4 - 16.5 , 16.8 - 16.10 , 16.12 - 16.18 , 9.12 - 9.15
गीता के इन सूत्रों से जो ज्ञान मिलता है वह इस प्रकार है -------
[क] सुख-दुःख से भरे जीवन के साथ रहनें वाला गुणों का गुलाम , भोगी ब्यक्ति आसुरी सम्प्रदा वाला होता है ।
[ख] योगी वह है , जो भोग तत्वों को समझ कर बौराग्य - अवस्था में आकर भावातीत की अनुभूति प्राप्त करता है ।
गीता-श्लोक 18.40 कहता है --पूरे ब्रह्माण्ड में गुणों से अछूता कुछ भी नहीं है , मात्र एक परमात्मा ऐसा है जो
गुनातीत है ।
अब आप सोचिये ----
निर्गुण ब्रह्म सगुण सूचनाओं का श्रोत है
भावातीत ब्रह्म सभी भावों का श्रोत है
और जो -------
इस स्थिति के प्रति होश मय है वह ------
परम तुल्य है
====ॐ======
Monday, January 4, 2010
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