भावातीत भावों का श्रोत है --गीता ...10.4 - 10.5
Thales [624 - 546 BCE ] जब बोले ----पानी जीवों के होनें का कारण है तब उनका शिष्य अनाक्सीमंदर बोल पड़े --
यह बात ठीक नहीं है , ज्ञात - ज्ञात के होनें का कारन नहीं हो सकता , जीव का श्रोत अज्ञात है और गीता श्लोक 2.28 कहता है ----
जो है वह सब अज्ञात से है और अज्ञात की ओर जा रहा है । गीता के दो श्लोक 10.4 - 10.5 कहते हैं ......
भावों का श्रोत भावातीत है , आइये इस बात के सम्बन्ध में गीता के कुछ और सूत्रों को देखते हैं ।
गीता श्लोक - 7.12 - 7.15 तक कहते हैं -----
तीन गुणों की माया से यह संसार परिपूर्ण है , तीन गुणों के भाव परमात्मा से हैं लेकीन गुणों एवं गुणों के भावों में परमात्मा नहीं होता । गुणों को जाननें वाला गुनातीत योगी परमात्मा को जानता है । तीन गुण एवं उनके भाव मनुष्य को परात्मा से दूर रखते हैं ।
गीता श्कोल 2.46 में ब्राह्मण की परिभाषा करते हुए परम श्री कृष्ण कहते हैं -----
वह जो ब्रह्म से परिपूर्ण है , ब्राह्मण है और गीता श्लोक 18.42 में श्री कृष्ण ब्राह्मण के कर्मों के संन्दर्भ में जो बातें कहते हैं , वही बातें गीता श्लोक 10.4 - 10.5 में कही गयी हैं । गीता श्लोक 10.4 - 10.5, 18.42 की बातें मनुस्मृति में 6.92 सूत्र में कही गयी हैं जो धर्म के लक्षण के लिए बताई गयी हैं । मनुस्मृति में धर्म के दस लक्षण बताये गए हैं जो गीता में ब्राह्मण के कर्मों के रूप में बताये गए है । गीता श्लोक 2.16 कहता है ----
ना सतो विद्यते भावो ना भावो विद्यते सत: अर्थात सत्य भावातीत है ।
आप के मन में संदेह हो रहा होगा की भावातीत भावों का श्रोत कैसे हो सकता है ? यदि आप विज्ञानं में रूचि रखते हैं तो आप को पता होगा की युरेनिंम धीरे - धीरे लीड में बदल जाता है और उसको बदलनें में 4.5 billion वर्ष लग जाते हैं ।
लीड में युरेनियम नहीं होता और युरेनियम में लीड भी नही होता पर विज्ञान में ऐसी बात है । जैसे युरेनियम एवं लीड का सम्बन्ध है वैसे भावों का भावातीत से है लेकीन यह मात्र समझे के लिए है ।
आप अपनें भावों के माध्यम से भावातीत को जान सकते हैं ।
=====ॐ=====
Wednesday, January 27, 2010
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