गीता श्लोक - 8.11 ...8.15 तक का वह- कौन है ?
[क] जिसको वेदों में ॐ , ओंकार और परम अक्षर कहा गया है [गीता - 7।8, 10.25, 9.17 ]----
[ख] ब्रह्मचारी जिसमें निवास करते हैं ----
[ग] राग रहित योगी जिसमें प्रवेश करते हैं ----
मैं उस परम पद के बारे में तुमको बताता हूँ ....यह बात परम श्री कृष्ण यहाँ कह रहे हैं , अर्जुन से ।
गीता सूत्र 8.11 - 8.15 तक को समझनें के लिए आप देखें गीता के निम्न सूत्रों को -------
8.14, 12.3-12.4, 13.30, 13.34, 14.19, 14.23, 15.5-15.6, 16.21-16.22, 18.55-18.56
गीता यहाँ कहता है -----
परम धाम , परम पद कोई स्थान या बस्तु नहीं है की जब चाहा उसे हाशिल कर लिया , यह एक अनुभूति है जो भावातीत की स्थितिमें समाधि में मिलती है और ऐसे लोग प्रकृति-पुरुष के सम्बन्ध को समझ कर
धन्य हो जाते हैं ।
काम,कामना , संकल्प, विकल्प ,क्रोध , लोभ , मोह , ममता , भय , आलस्य एवं अहंकार रहित योगी अपनें योग में परम उर्जा में जब आखिरी श्वास भरता है तब वह स्वप्रकाशित परम धाम को प्राप्त करता है
=====ॐ======
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