Sunday, January 17, 2010

गीता ज्ञान - 53

जीवन चक्र
गीता श्लोक 8.16 - 8.20 तक ..भाग - 2
यहाँ हम गीता के दो श्लोकों [ श्लोक 8.16 -8.17 ] को ले रहे हैं ।
गीता यहाँ वह सिद्धांत देता है जिसको आइन्स्टाइन संन 1917 में दे कर कोस्मोलोजी की नयी पक्की बुनियाद रखी थी । गीता कहता है -----
कल्प का आधा समय जीव रहित होता है जिसको ब्रह्मा की रात कहते हैं । ब्रह्मा का दिन - रात बराबर अवधि के होते हैं और एक दिन चार युगों की अवधि से हजार गुना बड़ा होता है । ब्रह्मा का दिन वह समय है जिसमें जीव होते हैं , पैदा होते हैं , समाप्त होते हैं और पुनः पैदा होते रहते हैं - यह क्रम चलता रहता है जब तक दिन होता है ।
ब्रह्मा की रात के आगमन पर सभी जीव अलग- अलग उर्जाओं में रूपांतरित हो - हो कर ब्रह्मा के सूक्ष्म रूप में समा जाते हैं । पुनः जब ब्रह्मा का दिन प्रारम्भ होता है तब सभी जीव उर्जाओं से साकार रूपों में आ जाते हैं जैसे पहले होते थे ।

अब गीता की बात पर आप सोचें की यह बात अपनें में कौन सा विज्ञानं समाये हुए है ?-----
[क] साकार बस्तुओं को ऊर्जा में बदलना यहाँ तक की जीवों को भी और पुनः उनको उर्जा से साकार रूप में रूपांतरित करना ।
[ख] चार युगों की समाप्ति के बाद भी ब्रह्मा का दिन होता है जो 999 x चार युगों की अवधी के बराबर का समय होता है । क्या इस लम्बे समय में मनुष्य नहीं होते ? और क्या यह पृथ्वी मानव रहित होती है ? जीवो से परिपूर्ण
मानव रहित पृथ्वी कैसी होती होगी ?

गीता की दो ऊपर दी गयी बातों पर आप सोचें ।

====ॐ=======

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