Monday, January 18, 2010

गीता ज्ञान - 54

गीता श्लोक - 8.16 - 8.20 तक ....भाग - 3
विज्ञानं कहता है -----
[क] लगभग 4.5 billion वर्ष पूर्व पृथ्वी ब्रह्माण्ड के फैलाव के फल स्वरुप एक अग्नि के गोले के रूप में प्रकट हुयी थी ।
[ख] पृथ्वी का अब से आगे का जीवन लगभग 1.5 billion वर्ष का है ।
[ग] अब से लगभग 500million वर्ष तक पृथ्वी पर जीव रहेंगे , इसके बाद यह जीव रहित हो सकती है ।
[घ] अब से लगभग 60 million वर्ष पूर्व तक पृथ्वी पर दैनासुरों का राज्य था ।
[च] पृथ्वी की orbital speed लगभग 30km/second है ।
[छ] पृथ्वी की गति को चन्द्रमा नियंत्रण में रखता है ।

पृथ्वी के संबध में कुछ वैज्ञानिक बातें ऊपर दी गई हैं , आप इन बातों को गौर से समझनें की कोशीश करें ।
आज विज्ञानं एक नयी पृथ्वी को खोज रहा है क्योंकि विज्ञानं सोचता है की पृथ्वी का जीवन संकट मय है ।
पृथ्वी पञ्च महाभूतों में एक तत्त्व है जिसके बिना जीवों का होना असंभव है लेकीन प्रगति के नाम पर पृथ्वी
को किस तरह बर्बाद किया जा रहा है ? यह बात किसी से छिपी नहीं है ।
विज्ञानं यह भी कहनें लगा है की चाँद पृथ्वी से दूर हो रहा है और यदि ऐसा सत्य है तो पृथ्वी की गति अनियंत्रित
हो जायेगी और इस पर रहनें वाले जीव- जंतु , पशु - पंछी एवं मनुष्यों का जीवन भी खतरे में होगा ।
पृथ्वी को अपना तन ढकनें में अरबों वर्ष लगे विज्ञानं पिछले चार सौ वर्षों में इसको निर्वस्त्र कर दिया ।
विज्ञानं का जन्म हुआ प्रकृति की सुरक्षा के लिए लेकीन मनुष्य की कामना मनुष्य को भक्षक बना दिया ।
निर्वस्त्र पृथ्वी कराह रही है लेकीन उसकी आवाज को कौन सुनता है ?

=====ॐ=====

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