ब्रह्म क्या है ?
अध्यात्म क्या है ?
कर्म क्या है ?
अधिभूत क्या है ?
अधिदैव क्या है ?
अधियज्ञ क्या है ? और ----
अंत समय में कोई आप को कैसे जानें ?----यह अर्जुन का आठवा प्रश्न है ---गीता..8.1- 8.3 तक ।
यहाँ हम ब्रह्म को ले रहे हैं
जो ब्रह्माण्ड का कारण है , जो अतिशुक्ष्म है , जो सनातन है , जो निराकार - साकार है , जो भावों का कारन है ,
जो भावातीत है , जो सब के अन्दर- बाहर है , जो अविज्ञेय - अज्ञेय है - वह ब्रह्म है ।
आप गीता में अस्सी से कुछ अधिक श्लोक परमात्मा के सम्बन्ध में देख सकते हैं जो लगभग एक सौ पचास
उदाहरणों के माध्यम से गीता के परमात्मा को ब्यक्त करनें की कोशिश करते हैं । गीता अंततः कहता है ---
मन- बुद्धि स्तर पर ब्रह्म को समझना कठिन है और ------
एक समय में एक साथ भोग और भगवन को नहीं रखा जा सकता ।
वह जो द्रष्टा है ....
वह जो साक्षी है ....
वह जो गुनातीत है , वह ब्रह्म को तत्त्व से समझता है ।
======ॐ=====
Friday, January 8, 2010
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