गीता का ब्रह्माण्ड रहस्य -भाग- 1
गीता श्लोक - 8.16- 8.17
यहाँ आप गीता के निम्न श्लोकों पर अपना ध्यान केन्द्रित करें .......
3.22, 7.4 - 7.6, 7.14, 13.5 - 13.6, 13.19, 13.33, 14.5 - 14.6, 15.1 - 15.3, 15.6 , 15.16
गीता के सोलह सूत्र क्या कह रहे हैं ? इस बात को हम यहाँ ब्रह्माण्ड रहस्य में आंशिक रूप को देखेंगे और शेष को आगे चल कर देंखेगे ।
गीता कहता है -----
निर्गुण निराकार सीमा रहित सर्वत्र असोचनीय , अब्यक्तनीय परमात्मा से परमात्मा में तीन गुणों की माया है ।
माया से माया में विज्ञानं का टाइम स्पेस है । गीता का ब्रह्माण्ड तीन लोकों में है जो सूर्य से प्रकाशित हैं लेकीन
परमात्मा स्वप्रकाषित है । पृथ्वी को मृत्यु लोक कहते हैं क्यों की यहाँ जीव हैं जो जन्म , जीवन एवं मृत्यु के
चक्र में हैं ।
अपरा प्रकृति एवं परा प्रकृति जब आपस में मिलती हैं और इनके मिलनें से जो ऊर्जा पैदा होती है यदि इस ऊर्जा में
वह क्षमता हो जो आत्मा-परमात्मा को आकर्षित कर सके तब जीव का निर्माण होता है । यह वह सिद्धांत है
जिसके बारे में वैज्ञानिक परेशान हैं ।
जीव परमात्मा का एक परम रहस्य है और विज्ञानं इसे खोजनें में लगा है ।
शेष अगले अंक में
====ॐ=====
Saturday, January 16, 2010
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