Monday, January 4, 2010

गीता ज्ञान --43

कौन परमात्मा मय है ?----गीता श्लोक ...7.19 -7.20

[क] वह कर्म-योगी जिसको निष्कर्मता की सिद्धि मिली है ....
[ख] और ज्ञानी
परमात्मा मय होते हैं ।

ज्ञान क्या है ?......गीता श्लोक - 13.1 - 13.3
ज्ञान वह है जिससे क्षेत्रज्ञ - क्षेत्र का बोध हो ।
ज्ञानी कौन है ?....गीता श्लोक - 13.7 - 13.11
समभाव में रहनें वाला , ज्ञानी है ।
अज्ञान किस से है ?....गीता श्लोक - 7.20 , 18.72 - `8.73
राजस- तामस गुणों के बंधन ,अज्ञान की जननी हैं जैसे - काम ,क्रोध , लोभ , अहंकार , मोह , भय , आलस्य ।
गीता श्लोक 17.4 - 17.6 , 17.14 - 17.22
गीता कहता है .....
गुणों के आधार पर तीन प्रकार के लोग हैं और उनका अपना-अपना तप , साधना, पूजा , कर्म , त्याग , बुद्धि ,ध्रितिका और सोच है । सात्विक गुण धारी संसार को परमात्मा के रूप में देखता है , राजस गुण धारी संसार को राग का समुंदर समझता है और तामस गुण धारी संसार से भयभीत रहता है ।
गीता कहता है -गीता --4.38
कर्म-योग सिद्धि से ज्ञान मिलता है जो आत्मा का बोध कराता है अर्थात ----
ज्ञान - योग शास्त्रों से ही नहीं कर्म से भी मिलता है , कर्म के ज्ञान में अहंकार अधिक ताकत वर नहीं होता लेकीन पठन - पाठन से जो ज्ञान मिलता है उसमें अहंकार तीब्र हो सकता है ।
महान वैज्ञानिक आइन्स्टाइन कहते हैं -----
ज्ञान दो तरह का होता है ; एक वह जो किताबों से मिलता है , यह ज्ञान मुर्दा ज्ञान है और दूसरा वह ज्ञान है जो
सजीव ज्ञान है , यह चेतना से बुद्धि में बूँद-बूँद टपकता है ।

====ॐ======

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