परमात्मा से भरना क्या है ? गीता श्लोक - 8.21 - 8.22
गीता के दो श्लोक कह रहे हैं ........
अब्यक्त अक्षर का अब्यक्त भाव ही परम गति है जो परम धाम के रूप में अनन्य भक्तिके माध्यम से मिलती है ।
विज्ञानं के सूत्रों एवं गीता के सूत्रों में समानता है , जो देखनें और सुननें में छोटे हैं लेकीन भावों में इनकी कोई सीमा
नहीं है । आइन्स्टाइन का एक सूत्र है --E = mc2[ energy = mass x square of the speed of light ] जिस पर वैज्ञानिक पिछले एक सौ वर्ष से सोच रहें हैं और गीता के 700 सौ श्लोकों के ऊपर दर्शन शास्त्री पिछले 5000 सालों से सोच रहे हैं और यह सोच चलती रहेगी ।
गीता के दो सूत्र जिनको ऊपर दिया गया है वे क्या कह रहे हैं ? अनन्य भक्ति वह भक्ति है जो समभाव को जागृति करती है , जिसको परा भक्ति का प्रारम्भ कह सकते हैं । अनन्य भक्ति से ह्रदय में अब्यक्त भाव भरता है ।
अब्यक्त भाव में अब्यक्त अक्षर की गूंज ह्रदय में सुनाई पड़ती है । जो साधक इस स्थिति में शरीर छोड़ता है तो उसकी स्थिति को परम गति कहते हैं । परम गति में निर्विकार मन आत्मा को नए शरीर तलाशनें के लिए बाध्य नहीं करता , ऐसे साधक की आत्मा परमात्मा में मिल जाती है । परात्मा का निवास ही परम धाम है ।
भोग से समाधी तक का मार्ग मन- बुद्धि आधारित है जो एक - एक कदम चल कर तय किया जाता है लेकीन
समाधि से परम धाम का मार्ग अब्यक्त मार्ग है ।
उठाइये गीता और जम जाइए , एक न एक दिन परम धाम की यात्रा आनें ही वाली है ।
=====ॐ=====
Tuesday, January 19, 2010
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