Friday, January 1, 2010

गीता ज्ञान 39

कौन परमात्मा को तत्त्व से जानता है ?



गीता श्लोक 7.3 में श्री कृष्ण कहते हैं ------

परमात्मा प्राप्ति के लिए हजारों लोग ध्यान करते हैं , उनमें से कुछ का ध्यान फलित भी होता है और जिनका ध्यान सिद्ध होता है उनमें से एकाध लोग परमात्मा को तत्त्व से जान पाते हैं पर ऐसे लोग दुर्लभ होते हैं ।


अब आप इस श्लोक के साथ संसार पर एक नजर डालिए और देखिये की यहाँ जो योगी दीखते हैं , वे किस श्रेणी के हैं ?

[क] जो पृथ्वी के मानचित्र को नहीं देखे हैं वे स्वर्ग का नक्शा दिखाते हैं ।

[ख] जो अपने को तो जानते नहीं , वे परमात्मा से परिचय कराते हैं ।

[ग] जिनको अपनें पोते में बाल श्री कृष्ण नहीं दीखते , वे कृष्ण- भक्ति में नाचते हैं ।

[घ] जो अपनें गृहस्ती से भागे हैं , वे गृहस्त - धर्म पर प्रवचन करते हैं ।

एक छोटी सी बात आप अपनें संग रखें तो आप को भटकना नहीं पडेगा और वह बात है ------

जो परमात्मा का प्रेमी है वह परमात्मा की परिभाषा नहीं खोजता , वह परमात्मा में बसा हुआ होता है ।


आज मेरे जैसे लोगों की कतारें लगी हैं जो लोग स्वयं तो अंधे हैं ही लोगों को भी भ्रमित कर रहे हैं ।

आनद बुद्ध से एक बार पूछते हैं ------

भंते ! परमात्मा के नाम पर आप चुप क्यों हो जाते हैं ? बुद्ध कहते हैं ----आनंद ! बताया उसको जाता है जो होता है , परमात्मा तो हो रहा है फिर उसको कैसे ब्यक्त किया जा सकता है ? और यही बात बुद्ध को नास्तिक श्रेणी में ला दिया जब की उपनिषद् कहते हैं ------

श्रृष्टि के प्रारम्भ में सत-असत परमात्मा था और वह स्वेक्छा से अनेक बन गया और ऋग्वेद कहता है -----

वह स्थिर था , अपनी मर्जी से गतिमान हो उठा और टाइम स्पेस का निर्माण हुआ ।


गीता श्लोक 7.3 को समझनें के लिए आप गीता के निम्न सूत्रों को भी देखें ------
6.42 , 7.19 , 12.5 , 18.54 - 18.55

गीता कहता है , साधक दो प्रकार के हैं .....सगुण एवं निर्गुण । निर्गुण उपासना अति कठिन उपासना है और

ऐसे उपासक बहुत कम होते हैं क्यों की ऐसे की साधना करना कठिन है जो इन्द्रियों , मन एवं बुद्धि से अछूता हो ।



परमात्मा को तत्त्व से जाननें वाला योगी गीता का गुनातीत योगी होता है जो अपनें स्थूल शरीर में ज्यादा दिनों तक
नहीं रहता , वह परम गति को प्राप्त करता है ।



======ॐ======

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