यजुर्वेद कहता है -----
मनन किया गया बचनों से ब्यक्त होता है , बचनों से ब्यक्त भाव कर्म का रूप लेता है और कर्म का फल , मनुष्य के जीवन की उर्जा है , और गीता कहता है --------
गीता श्लोक - 2.62 - 2.63 , 6.24 , 2.55 , 2.71 , 6.2 , 6.4 , 7.20 , 18.72 - 18.73
मनन से आसक्ति , आसक्ति से संकल्प , संकल्प से कामना उठती है और कामना में आया अवरोध , क्रोध की जननी है ।
क्रोध का सम्मोहन पाप का कारण होता है । कामना - मोह , अज्ञान की पहचान हैं और इनसे अप्रभावित ब्यक्ति योगी , संन्यासी एवं बैरागी होता है । यहाँ आप जो कुछ भी देखा रहे हैं उनका सम्बन्ध , वर्तमान से है लेकीन वर्तमान तो दौड़ का प्रारम्भ मात्र है , यह दौड़ शरीर समाप्ति के बाद भी रहता है , गीता सूत्र 8.6 कहता है ------
आखिरी श्वास भरते ब्यक्ति में जो भाव भावित रहता है वह भाव उस ब्यक्ति के अगले जन्म को तय करता है लेकीन
ऐसे ब्यक्ति में वही भाव भावित रहता है जो उस ब्यक्ति के जीवन का केंद्र रहा होता है ....यह बात आप को समझनी पड़ेगी ।
गुणों के प्रभाव में जो शरीर छोड़ता है , उसका अगला जन्म कैसा होता है , देखिये गीता सूत्र -------
6.4 , 6.42 , 7.3 , 7.19 , 14.14
सात्विक गुण धारी
यहाँ दो श्रेणिया हैं -----
[क] जो लोग बैराग्य में पहुँच कर योग से पतित हो जाते हैं , वे योगी कुल में जन्म ले कर अपनी आगे की यात्रा करते हैं और ---
[ख] जो बैराग्य तक नहीं पहुँच पाते , वे पहले स्वर्ग में जा कर ऐश्वर्य - भोगों को भोगते हैं और फिर किसी अच्छे कुल में जन्म ले कर अपनी योग- यात्रा को आगे चलाते हैं ।
राजस गुण धारी
गीता श्लोक - 14.15
ऐसे लोग भोगी कुल में जन्म लेते हैं ।
तामस गुण धारी
गीता श्लोक - 14.15
ऐसे लोग पशु , कीट या मूढ़ जोनी में पैदा होते हैं ।
अगला जन्म क्यों होता है ?
गीता श्लोक - 8.6 + 15.8
अगला जन्म अर्थात वर्तमान , यह एक अवसर है , आवागमन को समझनें का और इस से मुक्त होनें का ।
अतृप्त ब्यक्ति को प्रकृति एक और मौका देती है की इस बार तेरे को प्रकृति - पुरुष के रहस्य को समझ कर मुक्त होना है , जो चुक गया वह पुनः आयेगा और जो इस अवसर का फ़ायदा उठा लिया , वह मुक्त हो गया
परम गति जिनको मिलती है वे ऐसे होते हैं ------
गीता श्लोक - 13.30,13.34,14.19,15.5,15.6,16.21-16.22,18.55-18.56
गीता कहता है -----
जो इस ब्रह्माण्ड को ब्रह्म के फैलाव रूप में देखता है , ब्रह्माण्ड की सूचनाओं को ब्रह्म से ब्रह्म में देखता है , जो सब में
ब्रह्म को मह्शूश करता है , वह परम धाम को जाता है या परगति में पहुंचता है ।
आप क्या चाहते हैं --- यहाँ इतनी सी बात को याद रखें की -----
चाह के साथ प्रभु मय होना असंभव है ।
====ॐ======
Tuesday, January 12, 2010
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