Thursday, January 21, 2010

गीता ज्ञान - 57...श्लोक 9.20

गीता का यह श्लोक कहता है ------
तीन वेदों में वर्णित सकाम कर्मों को करनें वाले लोग यज्ञों के माध्यम से स्वर्ग - प्राप्ति चाहते हैं ।
इस श्लोक में तीन बातें हैं .......
[क] स्वर्ग क्या है ?
[ख] यज्ञ से क्या कामना पूर्ति संभव है ?
[ग] गीता के समय क्या तीन वेद थे ?

गीता में 9.17, 9.20 श्लोकों से ऋग्वेद , सामवेद एवं यजुर्वेद - तीन वेदों की बात सामनें आती है , क्या जब गीता की रचना हुयी उस समय अथर्ववेद नहीं था ?

यज्ञ के सम्बन्ध में आप गीता के इन श्लोकों को देखें ......4.24 - 4.33, 9.15, 17.11 - 17.15
गीता यज्ञ शब्द उनके लिए प्रयोग करता है जो परमात्मा के लिए किया जाए --श्वास लेनें से अग्नि में हवन करनें तक की सभी क्रियाएं , यज्ञ हो सकती हैं यदि उनका केंद्र परमात्मा बनाया गया हो । परमात्मा को भोग कर्मों में केंद्र बनाना , अज्ञान है और जो कर्म - फल मिलता है उसको देनें वाला परमात्मा नही होता ।

स्वर्ग के सम्बन्ध में आप देखें गीता के इन श्लोकों को -----9.20 - 9.23, 6.41 - 6.45, 2.42 -2.46 तक , यहाँ गीता कहता है .......
स्वर्ग प्राप्ति सफलता नहीं है , यह असफल साधना का फल है और एक अवसर है जहां से भोग में तृप्त हो कर मनुष्य
पुनः जन्म ले कर साधना पूरी करके परम गति प्राप्त कर सकता है ।

गीता आप के सभी समीकरणों को बदलता है और आप अपनें बनाए गए समीकरणों को बदलना नहीं चाहते ।
आज गीता के पूजक अधिक हैं और गीता के उपासक न के बराबर हैं --क्यों ..ऐसा क्यों है ? क्योंकि
गीता जो दवा देता है वह बहुत कदुई दवा है , कोई लेनें वाला नहीं ।

======ॐ======

2 comments:

  1. श्री मद भागवत गीता की बहूत ही ज्ञान बर्धक व्याख्या करने के लिये आपका बहूत बहूत धन्यबाद| आपके सारे लेख बहूत उच्च कोटि के हैं

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