कौन प्रभु से परिपूर्ण है ?----गीता श्लोक ...9.29
यह श्लोक कहता है ......
सब में प्रभु सम भाव से है , प्रभु का कोई प्रिय - अप्रिय नहीं है लेकीन प्रभु के प्यार में डूबे हुए में प्रभु प्रकट होता है ।
अब आप गीता के इस परम सूत्र के सम्बन्ध में गीता की कुछ और बातों को देखिये -------
[क] आसक्ति , कामना रहित सम भाव वाला प्रभु से परिपूर्ण होता है .....गीता - 2.56 - 2.57, 2.69 - 2.70
[ख ] करता भाव रहित , काम , कामना , क्रोध , लोभ , भय , मोह रहित योगी , प्रभु से परिपूर्ण होता है ....गीता --
3.27, 4.10, 5.6, 5.23
[ग] आसक्ति रहित योगी परा भक्ति के माध्यम से प्रभु से परिपूर्ण होता है .....गीता - 18.49 - 18.50
[घ] गुणों को करता समझनें वाला द्रष्टा / साक्षी भाव में प्रभु से परिपूर्ण होता है ...गीता - 14.19 - 14.23
[च] कर्म में अकर्म एवं अकर्म में कर्म देखनें वाला गुनातीत योगी प्रभु से परिपूर्ण होता है ....गीता - 4.18,5.6,7.15
[छ] प्रभु के प्यार में डूबा , आत्मा- परमात्मा केन्द्रित सब को प्रभु के फैलाव के रूप में देखनें वाला तथासब में प्रभु को देखनें वाला , प्रभु से परिपूर्ण होता है .......देखिये गीता ------
2.55, 6.29 - 6.30, 9.29, 13.28 - 13.30, 13.34, 18.54 - 18.55
अब आप जितना सोच सकते हों उतना सोचिये , आप की सोच का अंत होगा लेकीन गीता आप को ------
अनंत में देखना चाहता है ।
====ॐ=====
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