Thursday, April 1, 2010

श्री गुरु ग्रन्थ साहिबजी एवं गीता - 17

जपजी मूल मंत्र - 9

गुरु प्रसाद [ Master,s blessing ]
श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में गुरु शब्द की परम पवित्र दरिया बहती है , आखिर गुरु है कौन ?
गुरु वह श्रोत है जिसके प्रसाद से श्रद्धा से परिपूर्ण ब्यक्ति के तन , मन एवं बुद्धि में परम ज्ञान की धारा
प्रवाहित होती है । अब आप ज़रा इन बातों पर सोचें ........
[क] आदि गुरु श्री नानकजी साहिब का गुरु कौन था ?
[ख] आदि गुरु अपने हर एक सन्देश में गुरु की बात करते हैं , आखिर वह गुरु कौन है ?
[ग] आदि गुरु श्री नानकजी का वह गुरु कौन था जिस के लिए उनका तन , मन एव बुद्धि अर्पित थी ?
[घ] आदि गुरु श्री नानकजी साहिब को परम ज्ञान किस श्रोत से मिला ?

आप जब ऊपर के सवालों में अपनें को घुलानें की कोशिश करेंगे तब अंत में आप को पता चलेगा की -----
आदि गुरु श्री नानक जी के गुरु थे .......
एक ओंकार --
सत नाम --
करता पुरुष ---
अजुनी , जो --
अजन्मा हैं , जिनसे टाइम स्पेस है , जो द्रष्टा हैं , जो साक्षी हैं , जो सर्वत्र हैं , जो सब में सम भाव से हैं और
जो भावातीत हैं [ गीता - 2.16]

गीता में परम श्री कृष्ण के 556 श्लोक हैं और जब दस श्लोक राह जाते हैं तब प्रभु अर्जुन से कहते हैं ---
[ गीता सूत्र - 18.62 ] अब तूं जा उस प्रभु की शरण में वहीं प्रसाद रूपमें तेरे को शांति मिलेगी ।
गीता में परम श्री कृष्ण बार - बार अर्जुन को कहते हैं की तूं मेरी शरण में आजा , मैं ही ब्रह्म हूँ , मैं ही
सब का आदि मध्य एवं अंत हूँ , मैं महा काल हूँ , मैं सब के अन्दर , बाहर , समीप एवं सब से दूर भी हूँ ।
गीता में परम के 556 श्लोकों में लगभग 100 श्लोक आत्मा - परमात्मा से सम्बंधित है लेकीन अंत में
आकर प्रभु अर्जुन से कहते हैं - जा तूं उस प्रभु की शरण में , वहीं तेरे को प्रसाद रूप में शान्ति मिलेगी ।

कहते हैं --- बिनु गुरु ज्ञान न होय , ज्ञान है क्या ?
गीता कहता है [ गीता सूत्र - 13.2 ] - वह जिस से क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध हो , ज्ञान है । ग्यानी वह है
जो सम भाव वाला हो [ गीता - 13.7 - 13.11 ] , क्षेत्रज्ञ है जीवात्मा जो परमात्मा है [ गीता - 10.20,15.7]
ज्ञान तन , मन एवं बुद्धि में बहनें वाली ऊर्जा को निर्विकार बनाता है और ग्यानी हर पल प्रभु में रहता है
परम गुरु का प्रसाद उसे मिलता है -----
जो सम भाव हो ....
जो कर्म में अकर्म , अकर्म में कर्म देखता हो ....
जो आत्मा से आत्मा में संतुष्ट रहता हो .....
जो सब को प्रभु से प्रभु में देखता हो ।

===== एक ओंकार सत नाम ======

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