Saturday, February 27, 2010

गीता ज्ञान - 90

नैषकर्म की सिद्धि , ज्ञान - योग की परा निष्ठां है -- गीता सूत्र - 18.50

गीता यहाँ इस सूत्र के माध्यम से कर्म - योग से ज्ञान - योग में प्रवेश करनें की टेक्नोलोजी दे रहा है ।
लोग कर्म - योग एवं ज्ञान - योग को दो अलग - अलग मार्ग समझते हैं लेकीन गीता का यह सूत्र कह रहा है --
निष्कर्मता ज्ञान - योग की परा निष्ठा है । निष्ठा क्या है ? निष्ठा वह है जो बदला न जा सके , जो है , वह है , उसके होनें में कोई संदेह नहीं । निष्ठावान , परम प्रेमी होता है जो रूप - रंग या अन्य से नहीं जुड़ता , वह जुड़ता है , बिना कारण , वह खुद नहीं समझता की वह किस से और क्यों जुड़ा है ?
गीता सूत्र - 18.49 कहता है -- जब कर्म में आसक्ति न हो तब नैष्कर्म की सिद्धि मिलती है । आसक्ति रहित कर्म का होना तब संभव है जब इन्द्रियाँ बिषयों से सम्मोहित न हों और बिषयों में छिपे राग - द्वेष इन्द्रियों को बाँध न सकें ।

गीता कहता है [ गीता श्लोक - 2.14, 2.45, 3.5, 3.27, 3.33, 5.22, 18.38 ] -- जो तुम कर रहे हो वह सब तुम नहीं कर रहे , गुण तुमसे करवा रहे हैं और ऐसे कर्म भोग कर्म हैं । भोग कर्मों में कभी क्षणिक सुख तो कभी दुःख मिलता है । काम , कामना , क्रोध , लोभ , अहंकार , भय , मोह एवं आलस्य - ये हैं गुण - तत्त्व जो हमारी पीठ ठोकते रहते हैं की तूं सी ग्रेट हो और हम फुल कर बैलून बन जाते हैं लेकीन होता क्या है ?
पल दो पल का यह भ्रमित सुख हमें गुमराह करता है ।

गीता कहता है - तुम जहां हो उसे समझो , उसकी समझ ही तेरे को वहाँ पहुंचाएगी जिसकी तेरे को अनजानें में तलाश है । भोग कर्मों में भोग तत्वों की पकड़ जब समाप्त होती है तब वह कर्म , कर्म - योग बन जाता है ।
भोग तत्वों की समझ ही - ज्ञान है अर्थात भोग कर्म भोग से कर्म - योग में पहुंचा कर आगे ज्ञान - योग में कदम रखनें के लिए इशारे करते हैं । गीता कहता है - आ तूं आजा , तेरा आना बहुत आसान है लेकीन गीता में
जो आया वह आगया ।

बुद्ध के पास एक सज्जन आये और बोले - भंते ! परमात्मा क्या है ? बुद्ध बोले - ऐसी भी क्या जल्दी है ? जा उस पेंड के नीचे आँखें बंद करके बैठ जा , तेरे को पता चल जाएगा की परमात्मा
क्या है और यदि न पता चला तो मैं बता दूंगा , वह आदमी तो घबडा गया , उसनें उस पेंड की ओर देखा -
वहाँ एक सन्यासी हस रहा था - वह था महा काश्यप , काश्यप कहते हैं - जो पूछना है अभी पूछ ले नहीं तो फिर क्या पूछेगा ? आज से ठीक एक साल पहलें मैं भी तेरी तरह इसी प्रश्न के साथ यहाँ भंते के पास आया था ।
भंते मुझे इस पेंड के नीचे बैठा दिए और मैं तब से आज तक बैठा हूँ । उस आदमी नें पूछा - क्या तेरे को पता चला की परमात्मा क्या है ? यदि न चला हो तो पूछ ले भंते से - कश्यप कहते हैं अब पूछनें के लिए है ही क्या ? जो मेरे में प्रश्न उठा रहा था वह तो चला गया ।
गीता से मिलता कुछ नहीं जिसको हम मिलना समझते हैं लेकीन वह दिखानें लगता है जो पहले से था लेकीन जो
गुणों से ढका रहनें के कारण दिख नहीं रहा था ।

=====ॐ======

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