Saturday, October 16, 2010

गीता सुगंध - 04


ज्ञान - योग समीकरण - 04

गीता के तीन श्लोकों को हम यहाँ देखनें जा जा रहे हैं , अपनें - अपनें मन -बुद्धि को विचार शून्यता की
स्थिति में ले आयें :---------
[क] गीता श्लोक - 13.34
यहाँ प्रभु कहते हैं ......
जैसे सूर्य से सभी लोक प्रकाशित हैं , वैसे यह देह जीवात्मा से प्रकाशित है ॥
[ख] गीता श्लोक - 15.5
प्रभु इस श्लोक में कहते हैं .......
प्रकाश के तीन श्रोत हैं ; सूर्य , चन्द्रमा और अग्नि । प्रभु कह रहे हैं ......
मेरा धाम इन से प्रकाशित नहीं , वह स्वप्रकाषित है ॥
[ग] गीता श्लोक - 8.16
प्रभु यहाँ कहते हैं ........
ब्रह्म लोक सहित सभी लोक पुनरावर्ती हैं ॥
यहाँ तीन श्लोकों में निम्न बातों के ऊपर आप को एवं हमें मनन करना है :-----------
** प्रकाश का क्या भाव है ?
** प्रभु का धाम कहाँ हो सकता है ?
** स्वप्रकाषित होनें का क्या भाव है ?
** सभी लोक यहाँ तक की ब्रह्म लोक भी पुनरावर्ती है , इसका क्या भाव है ?
तीन श्लोक और चार बातें ; सोचिये इन पर जितना सोच सकते हैं ।
प्रकाश का अर्थ रोशनी नहीं , ऊर्जा का श्रोत है , वह ऊर्जा जो जीव का बीज पैदा करनें के लिए
एक अहम् तत्त्व है ।
प्रभु का धाम कोई स्थान नहीं , प्रभु तो सर्वत्र हैं , सब के अन्दर , बाहर , नजदीक , दूर एवं सम्पूर्ण
ब्रह्माण्ड के कण - कण में हैं लेकीन जहां भी , चाहे जिस तरह हैं - साकार या निराकार रूप में ,
वहाँ ऊर्जा का एक औरा
होता है जो मनुष्य के मन - बुद्धि को चाहे एक पल के लिए ही सही ,
निर्विकार बना कर स्थिर कर देता है ।
सभी लोक पुनरावर्ती हैं , यहा तक की , ब्रह्म लोक भी , यह बात सोचनें लायक है ।
बिज्ञान कह रहा है -----
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में प्रजनन चल रहा है ; तारे तारों को पैदा कर रहे हैं , गलेक्सियाँ , गलेक्सियों को पैदा कर
रही हैं । एक समाप्त हो रहा है तो दूसरा उसकी जगह ले रहा है ,
यह आनें - जानें का क्रम मृयु लोक पर ही
नहीं सर्वत्र चल रहा है । वैज्ञानिक इस मृत्यु लोक को समाप्त करनें के कगार पर ले
आये हैं और अंतरिक्ष में
कोई नयी पृथ्वी की तलाश कर रहें है , जो आज नहीं तो कल मिलनें ही वाली है ,
इस बात को यहाँ प्रभु कह रहे हैं ।
ऊपर के श्लोक - 13.34 में एक वैज्ञानिक बात और है -----------
सूर्य का प्रकाश जहां तक पहुंचनें में कामयाब है उस क्षेत्र में ही सभी लोक हैं ,
यहाँ तक की .......
ब्रह्म लोक भी ॥
भारतीय वैज्ञानिकों को इस बात पर गंभीरता से सोचना चाहिए ॥

====== ॐ ========

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .


    विजयादशमी पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं .

    http://www.ashokbajaj.com/2010/10/blog-post_17.html

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