Tuesday, October 5, 2010

गीता अमृत - 47

कर्म योग समीकरण - 28

[क] गीता सूत्र - 6.1
यहाँ प्रभु कह रहे हैं ------
कर्म फल की चाह एक बजबूत बंधन है जो कर्म को योग नहीं बननें देती ........
[ख] गीता सूत्र - 3.27
मैं करता हूँ , ऐसा भाव उनको आता है जो अहंकारी हैं ................
[ग] गीता सूत्र - 18.17
जो अहंकार रहित हैं , वे बुद्धि के गुलाम नहीं ........
तीन अध्यायों से एक - एक सूत्र को चुन कर कर्म - योग का एक समीकरण आप को मेरे तरफ से एक उपहार ।
यह आप के ऊपर है की आप इस उपहार का कैसा प्रयोग करते हैं ।
गीता से जो मुझे मिलता है , उसे मैं आप सब को दे कर धन्य हो लेता हूँ , कुछ लोग गालियाँ देते हैं तो कुछ लोग
मुझे योगी समझते हैं ।
मैं योगी नहीं , भोगी ही हूँ , मेरे दो बच्चे हैं , दोनों अपनें - अपने कार्यों में संलग्न हैं , मैं अब पूर्ण रूप से
सांसारिक कार्यों से मुक्त होनें के लिए , गीता को पकड़ रखा हूँ , मुझे तो ख़ूब मजा मिल रहा है ।

===== ॐ =======

1 comment:

Followers