Monday, October 25, 2010

गीता सुगंध - 12

मैं आप को कहा था -----

ब्रह्म के सम्बन्ध में चर्चा करनें को ,
आइये ----
बुद्धि स्तर पर उसे समझनें की कोशीश करते हैं , गीता को आधार बना कर जिसकी .....
अनुभूति मन - बुद्धि से परे की है [ see gita - 12.3 and 12.4 here ]

ब्रह्म को बुद्धि स्तर पर समझनें के लिए आप को देखना होगा गीता के निम्न सूत्रों को ------
5.6 , 5.7 ,5.19 , 7.5 , 8.3 , 12.3 , 12.4 , 13.13 , 13.31 ,
14.3 , 14.4 , 14.26 , 14.27

गीता में अर्जुन का आठवां प्रश्न का एक भाग है ......
[ Arjuna asked , what is Brahm..... in chapter - 08 ]
ब्रह्म क्या है ?
प्रभु श्री कृष्णा कहते हैं ------
अक्षरं ब्रह्म परमं
अक्षर का अर्थ है - वह जो सनातन हो - परम सनातन अर्थात एक तरह से परात्मा ,
लेकीन ब्रह्म परमात्मा नहीं है , आगे चल कर आप गीता में देखेंगे ।
यदि आप ध्यान से देखें तो अर्जुन का यह प्रश्न होनें से पहले प्रभु गीता श्लोक - 5.6, 5.7, 5.19, 7.5 में
ब्रह्म की चर्चा किसी न किसी रूप में करते हैं पर अर्जुन को तो भागनें का मार्ग खोजना ही है ।

प्रभु ऊपर के श्लोकों के माध्यम से कहते हैं ------
ब्रह्म मेरे अधीन है , यह वह ऊर्जा धारण करता है जिसमें जीव के बीज होते हैं , जीवों का बीज मैं हूँ , मैं
ब्रह्म के माध्यम से जीवों को गर्भ में रखता हूँ । मेरी परा प्रकृति भी जीव को धारण करती है ।
परा प्रकृति को चेतना भी कहते हैं ॥
जो गीता में है उसे अलग - अलग अध्यायों से इक्कठा करके मैं आप को दे रहा हूँ ,
आप गीता प्रेस , गोरखपुर
से मुद्रित कोई गीता ले और एक - एक श्लोक को अपनाएं -----
क्या पता इस मार्ग में कहीं आप को .....
ब्रह्म की अनुभूति हो जाए ॥

चलना तो सीखिये , वह आप का इन्तजार कर रहा है ॥

==== ॐ =====

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