Monday, October 4, 2010

गीता अमृत - 46


कर्म योग समीकरण - 27

यहाँ हम देखनें जा रहे हैं , गीता के तीन सूत्रों को :--------
[क] सूत्र - 2.51
फल - चाह , रहित कर्म , मुक्ति का द्वार है .......
[ख] सूत्र - 5.3
कर्म बंधन मुक्त , कर्मयोगी , संन्यासी है .......
[ग] सूत्र - 4.41
कर्म - फल की चाह एक मजबूत बंधन है .........

प्रभु श्री कृष्ण के तीन श्लोक और दो बातें ; कर्म और कर्म बंधन ।
वह जो कर्म के बंधनों को समझ कर उनके बिना प्रभाव , कर्म करता है , वह कर्म - संन्यासी होता है ।
गीता में लगभग दो सौ से भी कुछ अधिक ऐसे सूत्र हैं जो यह दिखाते हैं की ......
एक सिद्ध - योगी के बचन कैसे होते हैं ?
हमें पता नहीं की श्री कृष्ण क्या थे ------ ?
भक्ति के अवतार थे ,
योग के अवतार थे
या एक सिद्ध सांख्य - योगी के अवतार थे ,
लेकीन गीता यह जरूर दिखादेता है की एक सिद्ध - योगी
कैसे बोलता होगा ?
गीता पढनें और सुननें में जितना आसान है , ब्यवहार में प्रयोग करनें में उतना ही जटिल है ।
कर्म - बंधन मुक्त हो कर श्री कृष्ण अर्जुन को युद्ध में उतरनें के लिए कह रहे हैं ,
ज़रा सोचना - क्या अर्जुन
वहाँ - कुरुक्षेत्र में इसलिए गए हैं की उनको ऎसी लड़ाई लडनी है जिसके पीछे कोई पकड़ न हो ?
कर्म बंधन हैं क्या ?
कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य , अहंकार - ये सब कर्म बंधन हैं , और कर्म योग के
माध्यम से जो ऊपर चढ़ रहे हैं , उनको इन तत्वों के प्रति होश मय होना पड़ता है ।
अब आप सोचिये की ------
गीता क्या है , जो .......
** कर्म बंधनों से मुक्त कराके कर्म करनें को कहता है .......
** भोग से बैराग्य दिला कर ग्यानी बनाना चाहता है .....
** जो भक्ति , कर्म योग , ज्ञान योग आदि से ज्ञान दिलाकर प्रभु में पहुंचाना चाहता है ,
और जो ......
** गुनातीत बना कर गुनातीत में भेजना चाहता है ॥

==== ॐ ======

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