Wednesday, October 13, 2010

गीता अमृत - 51


कर्म - योग सारांश

कर्म - योग कोई ऐसा योग नहीं है जैसा हम - आप समझते हैं : यह एक जीवन जीने की शैली है
जो धीरे - धीरे
प्रभु की ऊर्जा अन्दर है , ऐसा होश जगा देती है ।
गीता कर्म - योग साधना में कर्म करनें वाले को कुछ बातों पर ध्यान केन्द्रित करना होता है
और वे इस प्रकार हैं ----
जो कर्म हम से हो रहा है ,
उसे हम क्यों कर रहे हैं ?
उसके होनें के पीछे कौन सी ऊर्जा काम कर रही है ?
उसके होनें से हमें जो मिलनें वाला है ,
क्या वह .....
हमें आनंद से भर देगा ?
वह आनंद कितनें समय का होगा ?
गीता कहता है :-----
यदि आसक्ति , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य एवं अहंकार की उर्जाओं से कोई
कर्म करता है तो ----
उस कर्म का जो सुख मिलनें वाला है उसमें दुःख का बीज पल रहा है ।
इन्द्रिय सुख , राजस सुख है जो दुःख के साथ रहता है ।
इन्द्रिय - बिषय के सहयोग से जो होता है , वह भोग है ।
भोग , भगवान् से दूर रखता है ॥
ऐसा कोई कर्म नहीं है जिसमें दोष न हो लेकीन सहज कर्मों को करते रहना चाहिए ॥
गीता का कर्म योग ही ------
# झेंन साधना है ......
# सूफी साधना है ......

===== ॐ ======

1 comment:

  1. सक्रिय जीवन जीने की शैली ही कर्म योग हैं ....

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