Sunday, October 10, 2010

गीता अमृत - 49


कर्म योग समीकरण - 30

गीता के दो सूत्र :-----
सत्वं रज : तंम : इति गुणा: प्रकृति संभवा: ।
निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनं अब्ययम ॥ गीता - 14.5

रज: तम: च अभिभूय सत्वं भवति भारत ।
रज: सत्वं तमश्चैव तम: सत्वं रजस्तथा ॥ गीता - 14.10

सभी साधनाओं का सार हमें प्रभु गीता के इन दो सूत्रों के माध्यम से दे रहे हैं जिसको समझना ही .......
कर्म योग , भक्ति , ज्ञान योग आदि में प्रवेश दिलाता है ॥

ऊपर पहला सूत्र कह रहा है :------
सात्विक , राजस एवं तामस - तीन गुण निर्गुण आत्मा को सगुण देह के साथ बाँध कर रखते हैं ॥

ऊपर का दूसरा सूत्र कह रहा है :-----
सभी जीव धारियों में तीन गुणों का एक समीकरण हर पल रहता है : जब एक गुण ऊपर उठता है तो अन्य
दो स्वतः नीचे हो लेते हैं ;
इस बात को बीज गणित से समझते हैं ........
A+B+C = K [ say ]
when A increases proportionally value of B+C decreases to
have the same value of K.
ऐसा कभी नहीं हो सकता की दो गुण एक साथ ऊपर उठें लेकीन नीची दो गुण एक साथ जाते हैं ।
अब आप सोचना , इस बात पर :------
गीता का उद्धेश्य है गुणातीत बनाना
अर्थात ......
तीन गुणों को सुसुप्त कर देना
अर्थात मन - बुद्धि को द्रष्टा बना देना ।
जब तीन गुणों की पकड़ न के बराबर हो जायेगी , तब देह में आत्मा को रोकनें का काम कौन करेगा ?
और इस का कोई उत्तर गीता नहीं देता लेकीन -------
परमहंस राम कृष्ण जी कहते हैं ..........
गुणातीत योगी के देह में आत्मा तीन सप्ताह से अधिक नहीं रुक सकता ॥
गुणातीत योगी -------
इस संसार का द्रष्टा है ....
स्वयं का द्रष्टा है .....
आत्मा का द्रष्टा है .....
और वह यह जानता है की .....
जो कुछ भी है वह -----
प्रकृति - पुरुष का खेल है जिसको केवल मनुष्य समझ सकता है ॥

====== ॐ ======

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