Wednesday, October 13, 2010

गीता सुगंध


ज्ञान - योग समीकरण - 1

परिचय
कर्म - योग समीकरण के अंतर्गत आप को गीता के कुछ अनमोल रत्नों को दिया गया ,
क्या पता उनको आप
पत्थर के टुकड़े समझ कर फेक दिया या रत्नों के जौहरी के रूप में उनको
अपनें बुद्धि में रख रखा है ।

गीता में प्रभु अर्जुन से कहते हैं :------
चाहे तूं युद्ध कर .......
चाहे तूं तप कर .....
चाहे तूं ध्यान कर .....
चाहे तूं भक्ति कर ......
जो कुछ भी तूं प्रभु को प्राप्त करनें के लिए करेगा , उनका फल होगा -------
ज्ञान ॥
ज्ञान वह रसायन है जो मन - बुद्धि के रुख को भोग की ओर से योग की ओर मोड़ता है ॥
ज्ञान का यह अर्थ नहीं जो शास्त्रों के पढनें से मिलता है ......
जो गीता , उपनिषद् एवं अन्य किताबों को याद करनें से मिलता है .......
गीता का ज्ञान वह है -------
जो क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ के प्रति होश पैदा करता है ॥
Prof. Einstein कहते हैं :-------
ज्ञान दो प्रकार के हैं :
एक वह जो किताबों से मिलता है और जिसमें जीव नहीं होता ,
यह ज्ञान मुर्दा ज्ञान होता है ।
दूसरा ज्ञान वह है जो कभीं - कभी चेतना से मन - बुद्धिमें टपकता है ॥
क्या पता आप को ज्ञात है या नहीं लेकीन मैं यहाँ बताना चाहूँगा की ..........
बीसवीं शताब्दी का महानतम वैज्ञानिक आइन्स्टाइन को गीता प्रियतम ग्रन्थ था ॥
गीता की ऊर्जा से उनको ब्रह्माण्ड में वह दिखा जिसको ठीक वैसे न
लिख पाए जैसा देखा था ॥
गीता कहता है ज्ञान से सत का बोध तो होता है
लेकीन वह ......
ब्यक्त नहीं किया जा सकता ॥

====ओम =====

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