बुद्ध कहते हैं :
नियमित एक घंटा प्रति दिन संध्या काल में अपनी श्वास पर ध्यान करता है, जो
उसे निर्वाण का मिलना
ध्रुव सत्य है ॥
और
गीता सूत्र - 4.29 कहता है :-
[क] जहां अपान और प्राण वायु मिलते हों , उस स्थान पर अपनी प्राण ऊर्जा को एकत्रित करो ,
या .....
[ख] जहां प्राण वायु एवं अपान वायु मिलते हैं , उस स्थान पर अपने प्राण ऊर्जा को केन्द्रित करो ,
ऐसा करनें से समाधि में प्रवेश मिल सकता है ॥
गीता और उपनिषद् को हमारे कथावाचक पंडित लोग , अपनी - अपनी बातें जोड़ कर
इनको मुर्दा बनानें में कोई कसर न छोडी यही कारण था की बुद्ध गीता का नाम नहीं दिया था ।
बुद्ध अपनें इस बिधि को नाम दिया - विपत्सना ॥
एक बार परहंस जी समाधि में उतरे और काफी समय तक समाधि में रहे और जब उठे तब ----
रोने लगे और कहते थे ----
माँ ! मैं वहीं ठीक था , क्यों जगाया - तूनें ॥
बुद्ध की विपत्सना और गीता की ध्यान बिधि की रूप रेखा आप को यहाँ दी गयी ,
अब -----
अगले अंक में इस ध्यान विधी की चर्चा होगी ॥
==== ॐ ======
Wednesday, October 27, 2010
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