Friday, October 22, 2010

गीता सुगंध - 08


गीता श्लोक - 5.17

तन , मन , बुद्धि से जो प्रभु को समर्पित है , वह ग्यानी होता है ॥

ज्ञान तक पहुंचनें के लिए क्या करें ?

याद रखना , आप इस समय गीता में हैं जहां हर शब्द का अपना स्थान है ,
जो आया वही बोल दिया , से
गीता की यात्रा नहीं होती ।
अभी ऊपर हमनें कहा - ज्ञान तक पहुंचनें के लिए क्या करें ?

गीता कहता है .......

जबतक करता भाव है , अहंकार है, क्योंकि करता भाव अहंकार की छाया है ॥
जब तक अहंकार है , समर्पण का आना संभव नहीं ।
अहंकार योग के माध्यम से , जब पिघलता है , तब
श्रद्धा की धार फूटती है ।
ज्ञान और वैराग्य का गहरा सम्बन्ध है : गुणों के प्रभावों से मुक्त होना ,
वैराग्य है जहां प्राकृति - पुरुष ,
क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध होता है
और जब यह होता है तब ------
वह योगी द्रष्टा भाव में पहुंचा होता है ॥
द्रष्टा वह है जो ......
गुणों को करता समझता हो -----
प्रभु जिसका केंद्र हो ........
और जिसकी पीठ भोग की ओर हो ॥

===== ॐ ======

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