Saturday, October 23, 2010
गीता सुगंध - 09
गीता श्लोक - 4.41
यहाँ प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं :
कर्म बंधनों से मुक्त जो है , वह ज्ञानी है ॥
कौन कर्म बंधनों से मुक्त हो सकता है और
कर्म बंधन हैं क्या ?
गीता उन कारणों को कर्म बंधन कहता है जो कर्म करनें का भाव पैदा करते हैं ।
मनुष्य क्यों कर्म करता है ?
मनुष्य के कर्म करनें की निम्न में से कोई एक या एक से अधिक कारण हो सकते हैं .........
## अहंकार के कारण ------
## कामना पूर्ति के लिए -----
## क्रोध के सम्मोहन के कारण ----
## लोभ के प्रभाव में -----
## मोह के सम्मोहन में -----
## भय के कारण -----
गीता कहता है .......
एक - एक को तुम कबतक देखते रहोगे ?
मनुष्य को कर्म करनें की ऊर्जा गुणों से मिलती है ।
तीन गुण और उनके अपनें - अपनें बंधन हैं , जो कर्म के लिए प्रेरित करते हैं ।
गीता कर्म बंधन के रूप में तीन गुणों को देखता है और तीन गुण हैं :------
सात्विक
राजस
तामस
राजस और तामस गुण भोग की प्रेणना देते हैं और ......
सात्विक गुण में यदि अहंकार की छाया न पड़े तो यह प्रभु की ओर चलाता है लेकीन यह गुनातीत में
पहुंचनें में अवरोध भी हो सकता है ॥
साधना ऎसी चलानी चाहिए की कोई बंधन साथ - साथ न चल पायें क्योंकि अंततः आखिरी यात्रा
की छलांग बंधन हींन स्थिति में ही भरनी होती है ॥
===== ॐ ======
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment