Thursday, October 14, 2010
गीता सुगंध
ज्ञान - योग समीकरण - 2
परिचय - 2
ज्ञान - योग आप की साधना - यात्रा का एक आखिरी छोर है जहां तक की यात्रा को
ब्यक्त किया जा सकता है ,
लेकीन इसके आगे की यात्रा में .....
तन , मन एवं बुद्धि में जो ऊर्जा होती है , उसके पास , ब्यक्त करनें के
माध्यम नहीं होते , जैसे शब्द ॥
साधनाओं का माध्यम अनेक हैं लेकीन सबका परिणाम एक है ------
परा भक्ति में डूब कर भोग संसार का द्रष्टा बन कर परमानंद में डूबकी लेते रहना
या
बुद्धि स्तर पर शब्दातीत ज्ञान में उड़ते रहना ......
और कोई रास्ता नहीं दिखता ॥
बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में जब प्रोफ़ेसर आइन्स्टाइन अपना सापेक्ष - सिद्धांत
विज्ञान - जगत के सामनें
रखा तो उनके पास इतनें शब्द न थे की लोगों को संतुष्ट कर सकें लेकीन सत के सामनें
झूठ चाहे कितना
शक्ति शाली हो , रुक नहीं सकता ॥
संन 1910 तक प्रोफ़ेसर आइन्स्टाइन के ज्ञान को ब्यक्त करनें के लिए कोई गणित न था ,
उनके बिपक्ष में
एक सौ वैज्ञानिक खड़े थे , और आइन्स्टाइन मुस्कुराते हुए बश इतना बोले ........
यदि मैं गलत हूँ तो सौ की क्या जरुरत है , एक काफी होगा ॥
गीता का ज्ञान शब्द का भाव है वह अनुभव जो आगे बढनें की ऊर्जा दे ,
जिसमें न मैं हो , न तूं हो , न काम हो ,
न कामना हो और
कोई भोग तत्वों की पकड़ न हो ॥
गीता जो ज्ञान शब्द प्रयोग करता है ,
वह मनुष्य जीवन का वह मार्ग है जिसके .......
पीछे भोग संसार हो और ----
आगे प्रभु का परम आयाम ॥
गीता कहता है :------
मन को पकड़ो , मन के माध्यम से तुम --------
यातो नरक में जा सकते हो , या ------
निर्वाण में :
नरक में जानें के लिए ज्ञान तक पहुंचना संभव नहीं
क्योंकि ......
काम , क्रोध , लोभ , मोह , अहंकार की ऊर्जा तन , मन , बुद्धि में बहती रहती है
और .....
निर्वाण में वह कदम रखता है जो भोग संसार के अनुभव के आधार पर भोग को
अपनें पीठ पीछे छोड़ कर
आगे की यात्रा करता है जहां कोई आसक्ति नहीं , जहां कोई भाव नहीं ,
जहां कोई साथी नहीं और ......
जहां आनंद ही आनंद है , हर कदम और आनंद से भर देता है ॥
===== ॐ ======
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