Saturday, October 30, 2010

ब्रह्म की ओर कुछ और कदम

गीता सूत्र - 18.29 - 18.32 तक

पहले हमनें देखा गीता सूत्र - 2.41 और गीता सूत्र - 2.44 को , जहां ------
गीता में प्रभु कहते हैं .........
दो प्रकार की बुद्धि होती है ; एक का रुख प्रभु की ओर होता होता है और दुसरे का आकर्षण
भोग होता है ॥

अब आप देखिये गीता सूत्र - 18.29 - 18.32 तक जहां प्रभु कह रहे हैं ........
तीन प्रकार के गुण हैं , गुणों के आधार पर तीन प्रकार के लोग हैं
और उन सब की अपनी - अपनी
बुद्धियाँ हैं ॥
[क] सात्विक बुद्धि का आकर्षण प्रभु में बसनें का होता है ॥
[ख] राजस बुद्धि , भोग में रूचि रखती है , और .....
[ग] तामस बुद्धि इन दोनों के मध्य एक अवरोध सी है जो मोह , भय में रखती है ॥

बातों की एक बात ---------
ब्रह्म की अनुभूति उसको होती है ........
जो साधना में किसी वक़्त धीरे से मन - बुद्धि से परे के आयाम में पहुँच जाता है और इसका उसे इल्म
भी नहीं होता । जब वह साधक पुनः मन - बुद्धि के आयाम में वापस लौटता है तब उसे
लगता है की वह कहीं कुछ अपना अनमोल को खो दिया है और वह पुनः उसे पाना चाहता है ॥

अगले अंक में कुछ और बातों को देखते हैं ॥

======= ओम =======

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