Monday, October 18, 2010

गीता सुगंध - 05

ज्ञान - योग समीकरण - 05

प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान ।
आत्मन्येवात्मना तुष्ट: स्थिर प्रज्ञ: तदा उच्यते ॥
गीता - 2.55

कामना रहित कर्म करता , स्थिर - प्रज्ञ होता है ॥
यहाँ इस श्लोक के साथ आप दो और सूत्रों को देख सकते हैं :--------
गीता - 2.70

सूत्र कह रहा है ......

समुद्र जैसा शांत अन्तः कर्ण वाला , स्थिर प्रज्ञ होता है ॥

गीता - 4.19

संकल्प रहित , ज्ञानी होता है ॥

गीता के तीन परम सूत्र एक समीकरण दे रहे हैं :------
[ कामना + संकल्प + सम भाव ] के साथ यदि कोई हो तो ........

वह ग्यानी होगा ----
वह पंडित होगा ------
वह स्थिर प्रज्ञ होगा , और ......
ऐसा ब्यक्ति निराकार प्रभु का साकार स्वरुप होता है ॥

====== ॐ =======

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