Tuesday, October 26, 2010

गीता सुगंध - 13

दो कदम और , ब्रह्म की ओर -------

पिछले अंक में जो बताया गया , उसके श्लोकों के बारे में आप यहाँ देखें ।

ब्रह्म की चर्चा में कुल 26 श्लोकों को हम गीता से चुनें हैं , जिनमें से यहाँ इस अंक में दो सूत्रों को देखते हैं ॥
सूत्र - 2.41 , 2.44
गीता अध्याय दो के सूत्र 41,44 में प्रभु कहते हैं -----
अर्जुन बुद्धि दो प्रकार की होती है ; एक वह है जो भोग की भाषा में रस लेती है और दूसरी वह है ......
जिसमें प्रभु की धारा हर पल बहती रहती है ।
भोग के तत्वों को जो धारण करती है , उसे कहते हैं .......
अब्यवसायीका बुद्धि , और जिसमें प्रभु बसते हैं , उसे कहते हैं ......
ब्यवसायिका बुद्धि ॥
आगे चल कर हम देखेंगे की एक जगह प्रभु कहते हैं -- बुद्धि , मैं हूँ ॥

ब्रह्म की ऊर्जा जो हर जीवों में प्रभु की मर्जी से समान रूप से बह रही है , वह तो एक ही है जिसमें ......
कोई गुण तत्वों की मिलावट नहीं , जिसमें कोई भोग तत्वों की पकड़ नहीं लेकीन जब .....
मनुष्य अपनें इन्द्रियों एवं मन का गुलाम हो जाता है तब .....
इस ब्रह्म ऊर्जा में भोग तत्वों का आना हो जाता है और हम माया के गुलाम बन कर रह जाते हैं ॥
ऐसा समझिये ; दिन की दोपहरी है , सूर्य अपनी किरणों को फैला रहा है और एकाएक ......
गहनें बादल छा जाते हैं , ऎसी स्थिति में ------
[क] कुछ कहेंगे ....
सूरज बादलों में छिप गया है , और ......
[ख] कुछ जिनको सूरज कभी दिखा ही न हो , वह कह सकते हैं - सूरज है , कहाँ ?

बादल में सूरज नहीं है , न ही सूरज में बादल होते हैं , दोनों की अपनी - अपनी स्थितियां हैं ।
मनुष्य के अन्दर जो ब्रह्म ऊर्जा है , वह तो है सूरज के प्रकाश की तरह और .......
वह ऊर्जा जो भोग को धारण करती है , वह है - बादल की तरह ॥

शेष अगले अंक में ------

===== ॐ =======

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