दो प्रकार के योगी हैं ।
सन्दर्भ गीता -सूत्र .....6.37 - 6.45 तक
गीता में अर्जुन का सातवा प्रश्न कुछ इस प्रकार से है -----
श्रद्धावान असंयमी योगी यदि योग खंडित होनें पर शरीर छोड़ता है तब उसका अगला जन्म कैसा होता है ? और
उस योगी का अगला जन्म कैसा होता है जिसका योग सिद्ध हो गया होता है ?
यहाँ आप को गीता के निम्न सूत्रों को भी देखना चाहिए -----
7.3 , 7.19 , 12.5 , 14.20 , 9.20 - 9.22
अंग्रेजी में एक कहावत है जो मनोविज्ञानं का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत भी है ------
An idiot can never be hypnotised
अर्थात ...मूर्ख को सम्मोहित नहीं किया जा सकता और गीता में परम श्री कृष्ण और अर्जुन के मध्य भी कुछ ऐसा ही हो रहा है । कुरुक्षेत्र में युद्ध के बादल हर पल सघन हो रहे हैं , युद्ध किसी भी क्षण प्रारंभ हो सकता है , श्री कृष्ण चाहते हैं की अर्जुन युद्ध - पूर्व मोह रहित हो जाएँ लेकीन अर्जुन इस बात को समझनें की कोई कोशिश करते नहीं दिख रहे । जिस परिस्थिति में अर्जुन यह प्रश्न कर रहे हैं क्या ऐसा प्रश्न समय के अनुकूल है ?
अर्जुन के प्रश्न के सन्दर्भ में कहते हैं , परम श्री कृष्ण ........
[क] वह योगी जो श्रद्धावान तो होते हैं लेकीन असंयमी हैं , जब उनका अंत आजाता है तब वे कुछ समय स्वर्ग में
निवास करते हैं और फिर वे अच्छे कुल में जन्म ले कर अपनी साधना की यात्रा पुनः प्रारम्भ करते हैं ।
[ख] वह योगी जो सिद्धि प्राप्ति कर तो लेता है लेकीन परम गति प्राप्त करनें से पूर्व उसका योग खंडित हो जाता है और
उसके शरीर का अंत हो जाता है तो ऐसे योगी स्वर्ग न जा कर किसी योगी कुल में जन्म ले कर बैराग्यावस्था से
आगे की यात्रा करते हैं लेकीन ऐसे योगी दुर्लभ होते हैं ।
गीता स्वर्ग को भोग का एक परम माध्यम मानता है ।
योग का अंत तो नहीं है लेकीन इस स्थूल देह का अंत किसी भी क्षण संभव है ।
जो अपनें को सिद्ध योगी समझते हैं -----
वे अन्धकार में हैं ।
====ॐ======
Thursday, December 31, 2009
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