Tuesday, February 24, 2009

मैं और तूं ahankar

मैं में तूं को खोजना, गीता तत्त्व ज्ञान है
मैं में अंहकार और तूं में प्रीतिभरी होती है
मैं का जीवन नरक है और तूं से भरा जीवन का नाम स्वर्ग है
मैं के साथ मानव मानव से पशु बन जाता है
तूं में खोया मानव परम - तुल्य हो जाता है
मैं से तूं में पहुचना ही योग है
योग में मैं पिघल कर प्रीति में बदल जाता है
मैं का कार्य-क्षेत्र मन-बुद्धि तक सीमित है
तूं में डूबा ब्यक्ति अनंत को देखता है
भोगी परमात्मा को संसार में खोजता है.....
अपनें भोग-प्राप्ति के लिए....और योगी
ध्यान में परमात्मा को अपनें ह्रदय में देखता है जो....
परमानन्द है-----गीता-१३.२४
मैं में तूं को पाया औलिया सरमदनें
औलिया सरमद
औलिया सरमद एक यहूदी ब्यापारी था जो जेरुसलेम से दिल्ली तक की यात्रा करता था सरमद औरंगजेब[१६५८-१७०७] के समयसे पहले भी ब्यापार करनें के इरादे से भारत आया करता था
सन १६५९ में औरन्जेब के हुक्म पर औलिया सरमद का सर कलम किया गया ,दिल्ली के जमा मस्जिद की सीडियों पर सरमद घुमते-घुमते बनारस से आगे बिहार में अपनें ब्यापार के सम्बन्ध में एक गाव में पहुँचा जहाँ एक मजार पर भारी भीड़ लगी थी सरमद अपनीं दुकान लगा कर वहां सामान बेचनें लगा
दिन गुजर गया,सूरज डूब चुका था और लोग वापस हो रहे थे,सरमद सोचा चलो अब तो लोग भी जा रहें हैं क्यों न हम भी मत्था टेक लें सरमद मत्था टेका और रात भर उस मजार पर पड़ा रहा सुबह जब उठा तो बोला....या अल्लाह जब इस मिटटी की कब्र में इतना नूर है तो तेरा जलवा कैसा होगासरमद को अपनें मैं नें तूं मिलगया और उसदिन से सरमद सौदागर से औलिया सरमद बन गयासरमद को दिल्ली के मुल्लाओं नें बर्दाश्त नहीं कर पाए और बादशाह को राजी कराकर उसके सर को कलम करा दिया
सरमद का सर सीडियों से लुडकता हुआ एक ही धुन गुनगुना रहा था.......ला इलाही इल अल्लाह
जलाल उद्दीन रूमी[१२०७-१२७३]की एक कहानी है जिसको गुरुवार रबिन्द्र नाथ टगोर भी अपनें कलम से लिखा हैकथा बताती है............
एक प्रेमी अपनें प्रेमिका के दरवाजे पर आवाज लगाता है,अंडर से आवाज आती है...कौन...प्रेमी बोलता है -मैं,प्रेमिका कहती है---यहाँ दो के लिए जगह नहीं है और प्रेमी चुपचाप वहां से चला जाता है काफी समय गुजर गया एक दिन पुनः वह प्रेमी आता है और आवाज लगाता है...आवाज आती है....कौन,प्रेमी कहता है बश अबतो तूं ही तूं है.....कहानी यहीं समाप्त होजाती हैजब मैं से तूं मिलता है तब चेतना ब्रह्म से मिल जाती है जिसको निर्वाण कहते हैं

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