Wednesday, February 18, 2009

गीता - वाणी

देखिये गीता श्लोक ५.१४,५.१५
परमात्मा किसी के कर्म,कर्म-फल,करता-भावकी रचना नहीं करतापरमात्मा किसी के अच्छे-बुरे कर्मों
को ग्रहण भी नहीं करताजो लोग अज्ञानी हैं वे इसके बिपरीत सोचते हैं
देखिये गीता - श्लोक ९.१९ -९.२९-१३.१२
परमात्मा का कोई प्रिय या अप्रिय नहीं है
परमात्मा सत भी है और असतभी है
परमात्मा न तो सत है और न ही असत है
फ़िर
परमात्मा क्या है?..........इस परचर्चा होगी-आगे चलकर

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