परमात्मा किसी के कर्म,कर्म-फल,करता-भावकी रचना नहीं करतापरमात्मा किसी के अच्छे-बुरे कर्मों
को ग्रहण भी नहीं करताजो लोग अज्ञानी हैं वे इसके बिपरीत सोचते हैं
देखिये गीता - श्लोक ९.१९ -९.२९-१३.१२
परमात्मा का कोई प्रिय या अप्रिय नहीं है परमात्मा सत भी है और असतभी है
परमात्मा न तो सत है और न ही असत है
फ़िर
परमात्मा क्या है?..........इस परचर्चा होगी-आगे चलकर
No comments:
Post a Comment