Wednesday, February 11, 2009

गीता का ब्रह्म

देखिये गीता-श्लोक २.४२,२.४३,२.४४ तथा १२.३,१२.४
गीता कह रहा है.............
ब्रह्म को समझनें के लिए बुद्धि से आगे की यात्रा पैर पहुंचनाजरुरी है और राग एवं कामको एक साथ एक
बुद्धि में नहीं रखा जा सकता
prof. albert einstein says...........
A point in nature exists where all physical theories breakdown and he further says......
there are two types of knowledge- one is dead knowledge available in books and
other is aliveavailable in consceousness।
क्या आइंस्टाइन की बात गीता के बचनों से भिन्न है?......क्रमशः

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