गीता-रतन आप को कुछ देगा नहीं आप से छीन लेगा वह सब जो आप छोड़ना नहीं चाहते , आप तैयार हैं ?
ब्रह्म की अनुभूति तब होती है जब इंद्रियों से बुद्धि तक बहनें वाली ऊर्जा रूपांतरित हो जाती है और यह काम
गीता-रतन करता है गीता-रतन की डुबकीलेने से ................
न तन बचताहै न मन रहता है ...........
चेतना के फैलाव में ब्रह्म की अनुभूति होती है .........
जिसकी तलाश मनुष्य योनी में हमें ला रखी है ......
हमारे समझ की सीमा मन-बुद्धि तक सीमित है और इसके परे की समझ समाधि में होती है
क्रमशः ............
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