उजाले अपनीं यादों के हमारे साथ रहनें दो,
न जानें किस गली में जिन्दगी की साम हो जाए
कबिके भावको समझनें का प्रयाश करें , हो सकता है आप को वह मिल सके जिसको आप अनजानें में तलाश रहें होंलिखनें वाला उजाले तथा अंधेरे को अच्छी तरह से समझता है और किसी भी हालत में उजाले को खोना नहीं चाहता आपअपनें खोज के बारे में सोचना,क्या पता आप भी अनजानें में उजाले को ही खोज रहे हों? कबि और हम में अन्तर है--कबि को उजाले-अंधेरे का पता है लेकिन हम अंधेरे में रहते-रहते इतने अभ्यस्त हो चुके हैं कि हम न तो अंधेरे को जानते हैं और न ही उजाले कोइतना ध्यान रखें कि उजाले का रास्ता अंधेरे से निकलता है
गीता सतयुग,त्रेता-युग,द्वापर-युग तथा कलि-युग....चार युगों की बात करता है लेकिन
अब इस शताब्दी में विज्ञानके विकास को देखनें से ऐसा लगनें लगा है कि अब भोग-युग
प्रारम्भ हो चुका हैक्या आप को ऐसा नहीं लगता कि विज्ञान आए दिन जैसे-जैसे भोग-साधनों को विकसित करता जा रहा है,हम और-और तनहा होते जा रहे हैं ---इसका क्या कारन हो सकता है?क्या विज्ञान की खोजें मनुष्य को तनहा बनानें के लिए ही हैं?गीता कहता है---विज्ञान एवं तन्हाई दोनों तुम्हारी देन हैं,विज्ञान तुम्हें तनहा नहीं बना रहा तुम तनहा बना रहना चाहते हो-तुम्हें तन्हाई के रस का स्वाद भा गया हैमनुष्य अपनी मुट्ठी खोलना भी नहीं चाहता और अपनें बंद मुट्ठी में कुछ और को पकड़ना भी चाहता है--क्या ऐसा सम्भव हो सकता है?विज्ञान में आज तक कोई ऎसी सूचना[information]नहीं मिल पाई है जो स्थिर हो फ़िर हम भोग में क्यों बनें रहना चाहते हैं?गीता कहता है ---भोग में जितना तुम तैरना चाहते हो तैर लो अंततः तुम्हें आगे चलाना ही पडेगा योग का द्वार भोग है तुम द्वार को अपना घर नहीं बना सकतेतुम ऐसा समझो कि जब तक तुम तनहा हो,भोग में हो और जिस दिन परमानन्द से भर जावोगे ,तुम योग में होगेगीता-तत्त्व विज्ञान कमसे कम चार हजार साल पुराना तो है ही पर इसमें छिपा मनोविज्ञान आज के मनोविज्ञान से आगे की बात को वैज्ञानिक ढंग से स्पष्ट करता है
गीता-तत्त्व विज्ञान में आप भोग-तत्वों को समझ कर योग में प्रवेश करेंगे जहा आप को
वह दिखानें लगेगा जिसकी कल्पना भी अभी सम्भव नहीं हो सकतीकामना से सम-भाव,राग से वैराग तथा अंहकार से श्रधा की यात्रा का नाम गीता-तत्त्व विज्ञान है
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