शून्य और अनंत देखा- भारत के ऋषियोंनें
लेकिन............
इनकी गणित बनी पश्चिम में..........क्यों?
अब हम एक सामान्य गणित को देखते हैं
1- any quantity x o = o
2- zero x any quantity =o
3- zero devided by any quantity = o
4- any quantity devided by zero = infinity
5- any quantity to the power zero =1
कबीर साहिब कहते हैं ..........
बूंद समानी समुन्द्रमें क्यों कत खोजी जाय,
समुन्द्र समानी बूंद मह क्यों कत खोजी जाय
यहाँ पहली लाइन में समीकरण नम्बर -१ है और.....
दूसरी लाइनमें समीकरण नम्बर- २ है
तीसरा समीकरण कह रहा है...मन की शुन्यता ही परम शुन्य है,
चौथा समीकरण बता रहा है....विरह की तह में छिपी शुन्यतामें अनंत है........
और पाचवां समीकरण यह बता रहा है की .....बुद्धिमें उपजी शुन्यता ही ब्रह्म है यहाँ
कबीर साहिब अपनें एक समीकरण में अपरा भक्ति की बात बताई है जिसमें भक्त एवं परमात्मा के मध्य कुछ दूरी रहती है जहाँ एक नहीं दो होते हैं लेकिन अपनें दूसरे समीकरण में परा भक्ति की बात बता रहें हैं जहाँ एक, दूसरे में बिलीन होजाता है और जो बच रहता है वह है....ब्रह्म
सूत्र-३ बुद्ध-महाबीर की तरफ़ इशारा करता है जहाँ मन की शुन्यता से परम-शुन्यता मिलती है सूत्र - ४ मीरा के लिए है- जब वे कहती हैं.....अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल मीरा अपनीं वेदना के माध्यम से अनंत को समझ कर तृप्त हो जाती हैंसूत्र-५ है... जे.कृष्णमूर्ती तथा आदि शंकराचार्य जैसे लोगों के लिए जिन्होंनें बुद्धि की शुन्यता से परम सत्य-ब्रह्म को समझा
कंप्यूटर की भाषा शुन्य और एक पर आधारित है जो अपनें में अनंत को पकड़नें की क्षमता रखनें की कोशिश कर रही हैशुन्य ,एक और अनंत को समझनें वाले लोगों नें कंप्यूटर नहीं बनापाये, कंप्यूटर को बनाया उन लोगोंनें जिनको भारत से यह राज मिला
हमारे ऋषि शुन्य,एक एवं अनंत को जानकर पूर्ण तृप्त थे, उस अनुभूति को बुद्धि पर लानें के लिए कभीं सोचा ही नहीं और जिनको यह अनुभूति नहीं हुयी, वे कंप्यूटर बनाकर भी घोर अतृप्त हैं..गीता कहता है ....भूलजाओ की मन-बुद्धि के सहारे तुम कभीं तृप्त हो सकते हो----मन-बुद्धि तो भ्रम पैदा करनें के श्रोत हैं---ब्रह्म और भोग एक साथ एक समय एक बद्धि में नहीं हो सकते
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